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और कुछुका ज़मीन के ऊपर रहता है।दूसरी श्रेणी में सब प्रकार के नेशों का सभावेश होता है।इनमें की सबसे बडी जाति उष्ण कटिबन्ध में होती है।बहूत सी जातियां छोटे २ पौधेंके सदश होती हैं किन्तु कुछ बडे पेडों के सदश होती है।यह सिंहल व्दीपमें बहूतायत से हैं।नीलगिरि पर्वत पर उटकमंडके प्रसिध्द याग में बहूत सी इसी श्रेणी की समान जातियां है।सह्याद्रिके कैसलरॉक जंगल में भी ऐसे बहूत जातियां पाई जाती हैं।ये दस बारह फीट ऊंची होती है।इसमें शाखाय नहीं लगतीं।इनके सिरेपर लम्बे २ संयुक्त पर्णों का एक गुच्छा होता है। ये पत्तियां अन्तिम कली से एक के ऊपर एक उत्पन्न होती है।पत्तीयां सूखने पर नीचे गिर जाती है और उनसे एक बडा ब्रण तनेपर हो जाता है।जो छोटे पुच्छको तरह रहते हैं उनका मुख्य तना ज़मीन पर फैला हुआ अथवा कभी कभी ज़मीन के नीचे से टेढा बढता है।इनके सिरे पर संयुक्त वर्णों का एक गुच्छा रहता है।पत्तियां जब छोटी रहती हैं तभीसे अग्रभाग से लेकर डंठल तक घडी के स्प्रिगके सदश लिपटी हूई रहती हैं।सब नेचों में और ज्लनेचों में यह बात विशेष है।कुछ बनस्पतियोंके पत्ते सादे रहते हैं और विभक्त नहीं होते किन्तु पूरेके पूरे होते हैं।उष्ण प्रदेश में कितनी जातियां दूसरे वृक्षोंपर आधांश परोपजीवी बृत्तिसे रहती है। उदाहरणार्थ - मर्कट वार्शिग,नामका पौधा ऊंचे वृक्षोंपर पाया जाता है।कुछ पत्तोंपर,तनों पर या पत्तोंके डंठलोंपर एक विशेष प्रकार की सुंघनी रंग की वल्कें रहती हैं। इसमें जननकोशके गुच्छे बहूत होते हैं।वे पत्तोंके पुष्ट भागपर निकलते हैं वे इतर पत्तोंसे भिन्न नहीं होते।बहूत थोडी अपवादात्मक वनस्पतियों में दो प्रकार के पत्ते भित्र रहते हैं।भित्र भित्र जातियों में रहन सहन ,आकार तथा रचना में बहूत अन्तर दिखाई पडता है।अनेक जनन कोश के गुच्छोंका एक संघ पत्तोंके पृष्ट भाग में एक छोटी गद्दीपर निकलता है।तदनन्तर इसपर एक महीन आवरण आता है।प्रत्येक जननकोश के गुच्छे पत्ते की त्वचाके एक कोश से तैयार होता है और इसमें बहूत जननकोश होते है जननकोश का सर्वसाधारण आकार गोल होता है।उनमें कोश के अतिरिक बिल्कुल पतला लम्बा डंठल होता है इसपर जननकोश का गुच्छा रहता है।यह एक फूलनेवाली थैली होती है।इसके डंठलसे ऊपर सिरेतक और वहां से दूसरी तरफ कबीर २ आधे भाग तक विशिष्ट कोशों की एक पंक्ती होती हैं।इन कोशोंकी त्वचा बहूत मोटी होती है।कितनों में तो इस मोटी त्वचाके कोशोंकी पंत्त्कि दूसरी तरफ मध्य भागपर नहीं ठहरती किन्तु सीधी नीचे आकर डंठलसे मिलती है और इस पंक्तिकि एक पूर्ण कडी बन जाती हैं कुछ्में ये कोश नीचे डंठलसे डंठल तक नहों रहते किन्तु केवल ऊपर सिरेपर रहते हैं।और कई एक में यह में यह प्ंक्तिमें न होकर उसके बदले मध्य में दोनों तरफ मोटी त्वचाओकों कोशों का उपयोग जननकोशके गुच्छोंके स्फोटन के काममें आता है।कोशोमेंका पानी कम होकर उनकी त्वचा सिकुडती जाती है और इस कारण जननकोश के गुच्छेके मध्य भाग में एक दरार में से जननकोश बाहर निकलते हैं। जननकोशके गुच्छेके आकार ,और उसके ऊपरके आवरण इत्यादिसे भित्र भित्र नेचोंकी पहिचान होती है।बीचकी शिराके दोनों तरफ तिरछी शिराओंपर प्रायः ये उगते हैं।कई एक में ये संघ सीधी रेखाओं के सदश रहते हैं।कितनों में तो चन्द्रकला की तरह रहते हैं।की एक में पूरे वर्तुलकी तरह ,तो कई एकमें अर्ध वर्तुल की तरह होते हैं।कई एक में पत्तोंकी और से खडे लम्बे डंठलके अग्रभाग तक दोनों तरफ दो अख्ंड पंत्त्कियां होती है।पत्तोंकी तरफ किंचित् मुडकर वे ढक जाती हैं।ऊपर का आवरण सब तरफ से चिपका रहता है और कुछ में एकही तरफ से चिपका रहता है तो कई एकमें केवल बीच ही में चिपका रहता है।इस प्रकार से आवरण में भित्रताके आधार पर अनेक भेद हैं बहूधा पुरस्थाणु हृदय के आकार का अथवा ताशोंके पान के सदश होता है।उसके नीचे की तरफ स्त्री और पुरुष इन्द्रियां होती हैं।कई एक में यह तन्तुमय होता है और से वार के जननकोशों के तन्तुओंके सदश दिखाई देता है। उसके तिरछे भागपर दोनों इन्द्रियां निकलती हैं।तन्तुओंके बीच में रेत की डिबियां होती हैं।रेतकी डिबिया गोल होती है और पुरस्थाणु