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प्रस्तावना ।


हिन्दी का यह अमूल्य रत्न हिन्दी-संसार के ही अर्पण है । आशा ही नहीं, मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि एकबार सुचारू तथा सुव्यस्थित सन्चालन हो जाने पर यह कार्य केवल चमक ही नहीं उठेगा किन्तु पूर्ण-रुप से सार्वजनिक सहयोग भी पाता रहेगा । देश के धुरन्धर विद्वानों द्वारा सम्पादित यह वृहद् ग्रन्थ शिक्षित-समाज में तो आदर पावेगा ही, वरन् भारतीय साहित्य-संसार के असीम गौरव का भी विषय होगा ।


पूना श्रीधर व्यंकटेश केतकर २७-६-३४ एम० ए०, पी० एच० ङी०