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वायु बाइलके नियमसे व्यास स्निगध्नाके गूख्फानुरोधसे व्यास उध्यता वहनके गुखक्से व्यास वायुके प्रसरख से व्यास् इन सबकी श्रोसत
उज (हैद्रोज्न) -= २५४*१० -=१०५*१० -=१६६*१० -=१०२*१० -=१०३*१०
(कार्र्बन मोनोकसैड) कर्व प्राखिद् ----- -=२६०*१० -=२७४*१० -=२६२*१० -=२=६*१०
नैत्रोगजन् (नत्र) -=३१२*१० -=२३०*१० -=२७४*१० ----- -=२६२*१०
हवा -=२३०*१० -=२=६*१० -=२७२*१० ------ -=२=३*१०
प्राख (श्राफिर्जन) ------ -=२=२*१० -=२४*१० -=२७*१० -=२७*१०
(कार्बन दैओक्सैड) कबं द्विप्राखिद् -=३००*१० ३४५*१० -=३४=*१० -=३२=*१० २३३*१०
 ऊपर के कोष्ट्क से यह स्पष्ट हो जयेगा कि चाहे अलग श्रालाग माँगो से अणु का व्यस निकाला जये तो भी प्रयम वह एक ही आता है। ऋतियंत सूक्शम वास्तु कि गघनमे भले हि चाहे कुछ भन्तर पडे। इसी कारण् गोसे उपर्के कोष्ट्कमे एक से व्यस नही है। इस्के अतिरिक्त अंतर का एक और भी कारण है। उपरके कोष्टक मे उधु के व्यास जाकि गर्खना कर्ने मे हर एक उधु को गोल (स्फीयर) माना गया है किंतु येह निध्वपूर्वक नही कहा जा सक्ता है कि हर एक वायु (गास) का अणु बिल्कुल गोल ही है। अत्: अणु के व्यास मे मित्र मित्र पध्दति से गखाना कर्ने पर श्रम्तर पड्ता है। 
 ताप्मान और अणु कि गती - आजकल्के विज्ञानवेत्ताश्रो का मत है कि पधार्थ के अणु में गती होती है। यध्यपि ये अणु अत्यन्त वेग से स्वयम घूम्ते है तो भी पधार्थ स्थिर ही रेह्ता है। इन अणुओ कि गति क कारण उन्कि सापेज्ञता है। 
अणु कि गति पर प्रयोग कर्ने से बहुत सी काम कि बातो हक पता चल्ता है और उन्कि सहायात ही से अणु-गति का सिधांत बना है। सामान्यत: कह सकते है कि अणु कि गति तीन प्रकार कि है। पधार्थ भी तीन ही प्रकार के होते है। (१) घन (२) द्रच (प्रवाही) और गैसीय (वायु)। इन्ही तीन प्रकार के पधर्थो कि तीन प्रकार कि गतिया भी स्वरूपानुसार होती है। घन पधार्थि के अणु अत्यन्त सुच्छम परिमाख में गतीमान है। येह बात व्यवहार के अनेक अनुभावों से सिध कि जा सक्ती है। उदाहरणार्थ- यदि किसी धातुघर सोने का मुलम्मा किया जाया तोह बहुत विनोंतक वह मुल्म्मा जैसेका तैसा ही रखता है क्युंकि उस मुलम्मेके अणु वहां से नही हट्ते और न वे सुवर्ण कण उस धातु मे प्रवेश कर पाते है। इसि प्रकार यदि किसी हल्कि धातु पर सुवर्ण का पतला पत्तर चढा दिया जाये तो उस हल्कि धातु के कण उस पत्तर के ऊपर नही आ पाते अथ्वा उस पत्तर के कण उस धातु के अंगर प्रविष्ट नही होते। इससे यह सिध होता है कि धन पधार्थके अणु अत्यंत सुधम गती से घूमते है। किंतु जब पधार्थ वायु रूप कि दशा मे होते है, तो उसके अणु अति तीव्र गती से घूमते है। और उसकि सुदंध चारो ओर फैल जाति है। इसका कार्ण ये हे कि उसके कुछ कण वायु के साथ संलग्न हो जाता है और वे सर्वत्र फैल जाते है। 
 अब यह देखना चाहिए कि घनपधार्थो के अणुओकी स्तिथि कैसी होती है। बहुत से लोग येह समभेगे कि घनस्तिथि मे रेह्ने वाले पधार्थो के अणु भी बिल्कुल स्थिर होता है। परंतु येह वैचार गलत है। घनपहर्थो के अणु सिकुडते और फैलते