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गान्धी
 


आबाद नहीं हो सकते थे, आदि। इन सबके विरोध मे, भारतीयो की स्थिति में सुधार करने के लिए, आपने आन्दोलन शुरू किया, जो निष्क्रिय प्रतिरोध (Passive Resistence) के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी एक प्रकार का अहिंसात्मक सत्याग्रह था। गान्धीजी के सत्याग्रह प्रयोग का यह प्रथम प्रयास था। इसमें उन्हें सफलता मिली, और अपने ‘सत्य के प्रयोग के प्रति गांधीजी की धारणा और भी दृढ होगई। इस आन्दोलन में भारत से भी स्वर्गीय गोखले आदि ने काफी सहायता भेजी। गोखलेजी स्वय दक्षिण अफरीका गये। स्वर्गीय दीनबन्धु ऐड्रज से भी गान्धीजी की भेट इसी आन्दोलन-काल में हुई और ऐन्ड्रज साहब ने ही, दक्षिण-अफ्रीकी-सत्याग्रह के बाद गान्धीजी और दक्षिण-अफ्रीका-सरकार के प्रधान मन्त्री जनरल स्मट्स मे समझौता कराया। नेटाल के बोअर-युद्ध तथा जूलू-विद्रोह में गान्धीजी ने भारतीय एम्बुलेस दल का नेतृत्व किया और आहतो की सेवा की। सन् १९१४ मे भारत आगये।

सन् १९१४-१८ के युद्ध में उन्होंने, गुजरात की खेड़ा तहसील मे, सरकार की सहायता के लिए, रॅगरूट स्वय-सेवक-दल (Volunteers) का संगठन किया। दक्षिण-अफ्रीका के प्रवास-काल में ही उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह का प्रयोग और विकास किया और उसके सिद्धान्तो को स्थिर किया। सन् १९०८ में उन्होने “हिन्द स्वराज्य” नामक एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक मे अहिंसा तथा सत्याग्रह के सिद्धान्तो के आधार पर उनके अपने विचार हैं। आज भी गान्धीजी इस पुस्तक में प्रतिपादित सिद्धान्तो को मानते हैं। जब विश्व-युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में नई शासन-सुधार-योजना प्रकाशित की गई और दूसरी ओर रौलट मसविदो (Bills) को स्थायी क़ानून का रूप देने का प्रयत्न किया गया, तो गान्धीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ने की घोषणा की।

सन् १९२० में, पंजाब के अत्याचारो के विरोध में तथा ख़िलाफत के संबंध मे असहयोग-आन्दोलन शुरू किया। सन् १९२२ मे गान्धीजी को राजद्रोह के अपराध में ६ साल की सज़ा दी गई, परन्तु सन् १९२४ में बीमारी के कारण उन्हे मुक्त कर दिया गया। असहयोग-आन्दोलन का अवसान होते-न-होते देश में साम्प्रदायिक दंगों ने ज़ोर पकड़ लिया था, अतएव आपने