यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कोमागाता मारु
८५
 


नीति के साधन के रूप मे, अस्वीकार किया, और यह भी निश्चय किया कि राष्ट्रो के बीच किसी भी प्रकार का विवाद पैदा हुआ हो तो शान्तिमय साधनों के सिवा और किसी प्रकार से उसका निर्णय नही किया जाना चाहिये।


क्रैमलिन--मास्को (रूस) का एक राजमहल, जिसमे पहले ज़ार रहाकरते थे, परन्तु आज जिसमे रूस की सोवियट सरकार का प्रधान मन्त्रि-कार्यालय (सेक्रेटरिय्ट) है।


कैरोल द्वितीय--रूमानिय के राजा हैं। जन्म १६ अक्टूबर १८९३ को हुआ। सन् १९२५ मे, युवराज की स्थिति मे ही, राजनीतिक कारणो से उन्हें पद्च्युत होना पड़ा। वह फ्रांस मे एक यहूदी महिला के साथ रहने लगे। युवरानी हैलेन ने उन्हे तलाक़ दे दी। १९२७ मे राजा फ़र्डिनेन्ड की मृत्यु के बाद उनका राजकुमार माइकेल गद्दी पर बैठा। प्रधान-मंत्री मैन्यू के निमंत्रण पर वह सन् १९३० मे रूमानिया वापस लौटे। रूमानिया के राजा घोषित कर दिये गये। सन् १९३८ में उन्होने लौह-रक्षको (Iron Guards) का दमन किया। रक्षक नाज़ी पक्ष के थे। परन्तु मार्च १९४० मे लौह-रक्षको को पूनः राज्याश्रय दिया ग्या। रूमानिय तटस्थ रहना चाहता था, परन्तु हिटलर के सामने वह विवश रहा।


कोमागाता मारू--यह एक जापानी जहाज़ का नाम है। इसके साथ एक बड़ा मनोरंजक, किन्तु वीरतापूर्ण, इतिहास जुडा हुआ है। गत विश्व-युद्ध (१९१४) से पूर्व कनाडा की प्रिवी कौसिल ने अपने एक आज्ञा-पत्र में यह घोषणा की कि भारतीयो को कनाडा में प्रवास के लिए प्रविष्ट न होने दिया जायगा। जो कनाडा मे बस गये है, वे ही प्रवेश पा सकेंगे। उन दिनो कनाडा के लिए भारत से सीधा कोई जहाज़ नही जाता था। जो भारतीय कनाडा मे अधिवासी बन गये थे उन्हे भी क़ानूनी बाधायें लगाकर तथा अन्य बुरी तरह परेशान किया जाता था। वे भारत से अपने स्त्री-बच्चो को कनाडा मे नही लेजा सकते थे।

उक्त आज्ञा-पत्र के विरोध मे सन् १९१४ मे बाबा गुरूदत्तसिंह नामक एक साहसी सिख ने कोमागातामारू नामक एक जहाज़ कनाडा के लिए किराये पर लिया। यह माल ले जानेवाला जहाज़ था। इसमे ६०० सिख