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शिक्षा-सघ की स्थापना की ओर कई हाई स्कूल खोले । डी० ए०-वी० हाईस्कूल (अब कालिज ) को भारी सहायता की । सन् १८९६ तथा सत् १८९९ के उत्तरी भारत और राजपूताना के दुभिन्हों मे उन्होंने अकालक्वेपीडिंत जनता की ऐसी सेवा की, जिसकी सराहना सरकार ने भी की । १८८८ मे पहली वार काग्रेस मे शामिल हुए ओर हिंदुस्तानी मे भाषण दिया । १९०५ के बन्ग भङ्ग से उत्पन्न जाग्रति उत्तर मे पजाब तक फैल गई थी। लालाजी इस समय आन्दोलन के नेता ये, सरदार अजीतसिंह ओर श्री रामचन्द्र मनचन्दकं आपके सहकारी थे I सन् १९०६ मे वह कांग्रेस के सन्य-मण्डल के सदस्य बनाकर इगतैण्ड भेजे गए । वहाँ से आप अमरीका गये । अमरीका से वापस आने पर उन्हें, १९०७ मे, गिरफतार कर लिया गया । उन्हें निर्वासन का दण्ड मिला ओर मएडाले के क्रिले मे रखा गया । कुछ महीनो के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया । सन् १६०९ मे लालाजी ने पजाव हिन्दू महासभा की स्थापना की । १९११ के कांग्रेसी डेपुटेशन मे भी आप विलायत भेजेगये सन् १९१२ मे अपने पिता की स्मृति मे जगरोंव मे राधाकृष्ण हाईस्कूल की स्थापना की । सन् १११२-१३ मे, स्वर्गीय गोखले की अपील पर, दक्षिणी अफीका के प्रवासी भारतीयो की सहायतार्थ पंजाब से आपने २५,००० भेजे। बाद को लालाजी पुन: स्वत: इंगलेण्ड राये ओंर वहाँ भारत के सम्यन्ध ये ज़म्भप्त न्निर्णशा किया । सन १९१४ में, भारत लौटने के लिये जव आपकी पोलिटिकल फ्यूचर आफ़ इंडियाहाँ 'आर्यसमाज'सयुक्तराष्ट्र अमरीका' आदि कई उच्च कोटि की अँगरेजी पुस्तकें लिखी । मार्च १९२० मे भारत लौटे । आते ही आपने लाहौर से 'वन्देमातरमएँ नामक उच्च कोटि का उद्दे- देंनिक निकाला और तिलक राजनीति विद्यालय को स्थापना को। पीछे सेवक समिति की नींव डाली और उसका संचालन किया । वह संस्था स्थायी देशसेवक्र उत्पन्न करती है । यक्ष्यररोगियों के लिये एक अस्पताल भी आपने कायम किया । सन् १९२० में कलकत्ता मे कांग्रेस के विशेष अधिवेशन के सभापति चुने गये । तव लालाजी असहयोग के विरोधी ये, नागपुर में उसके स्वीकार होते ही आप आन्दोलन में योग देने लगे । असहयोग