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अराजकतावाद
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के प्रिंसिपल नियुक्त किये गये। 'वन्देमातरम्' तथा 'युगान्तर' बँगला पत्रो का सम्पादन किया। सन् १९०७ मे बङ्गभङ्ग से उत्पन्न हुए राष्ट्रीय आन्दोलन मे प्रमुख भाग लिया। सन् १९०८ मे विद्रोह करने तथा राजद्रोह के अभियोग में गिरफ्तार हुए, किन्तु निर्दोष सिद्ध हुए और छोड़ दिये गये। इसके बाद पांडिचेरी चले गये और वहाँ योग-आश्रम की स्थापना की। आप निरन्तर एकान्त में इतने वर्षों से समाधि लगाते रहे है। वर्ष में केवल तीन बार वह दर्शनार्थियों से अपनी कुटी मे मिलते हैं। वह केवल आशीर्वाद दे देते है। किसी दर्शनार्थी या साधक से, जो उनके आश्रम में रहता है, वह वार्ता-लाप नही करते। केवल माताजी से ही बातचीत करते है। वह एक विदेशी महिला है जो आश्रम का संचालन करती हैं। आपने योग, दर्शन, अध्यात्म तथा गीता पर अनेक विचारपूर्ण ग्रन्थ लिखे है।


अराजकतावाद--यह एक राजनीतिक सिद्धान्त है। इसका उद्देश्य संगठित शासन-सत्ता का नाश कर एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जिसमें सब व्यक्तियो–-नागरिको को पूर्ण स्वतंत्रता प्रात हो। अमरीका के विचारक थोरो ने कहा है--“सरकार सबसे अच्छी वह है जो बिलकुल शासन न करे, और जब मनुष्य ऐसी सरकार के लिए तैयार होजायँगे, तब उन्हे वैसी ही सरकार मिल जायगी।" अराजकतावादियो का यह मन्तव्य है कि प्रत्येक सरकार या शासन का आधार बल-प्रयोग है, हिसा है, और जबतक समाज में बल-प्रयोग पर आश्रित व्यवस्था क़ायम रहेगी तब तक मानव-समाज न सुखी रह सकेगा और न स्वतंत्रता का भोग ही संभव होसकेगा। इस प्रकार उनके मतानुसार सरकार चाहे प्रजातंत्रवादी हो, चाहे एकतंत्रवादी, अथवा समाजवादी, सभी समान रूप से दोषपूर्ण है। वे चाहते है कि मानवो का एक स्वतंत्र समाज स्थापित किया जाय जिसमे कोई दमनकारी-संस्था न हो, जिसमें न सेना हो, न पुलिस, न न्यायालय, और न जेलख़ाना । अराजकतावादियो मे विविधि विचारधाराएँ प्रचलित हैं। कुछ का ध्येय व्यक्तिवादी व्यवस्था और कुछ का समाजवादी व्यवस्था है। इनमे भी, साधनो के कारण, दो भेद है। एक वे हैं जो शान्तिमय साधनो द्वारा अराजक समाज की स्थापना करना चाहते हैं। दूसरे वे है जो हिंसात्मक उपायों से ऐसी व्यवस्था क़ायम