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भारत
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थी। इस अधिवेशन में 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव स्वीकार किया गया। इस प्रस्ताव में काग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से यह अपील की कि वह भारत से अपनी शासनसत्ता को हटाले। इसका यह तात्पर्य नहीं कि भारत से अँगरेज मात्र वापस चले जायँ। और न इसका यह मतलब है कि भारत में जो गोरी सेनाएँ हैं, वे वापस अपने देश को चली जायँ, प्रत्युत इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि भारत को स्वाधीन राष्ट्र घोषित कर दिया जाय और भारत में भारतीय जनता का प्रतिनिधि शासन स्थापित हो। इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि यदि सरकार ने इस अपील पर ध्यान नहीं दिया, तो कांग्रेस अपने राजनीतिक स्वत्वों तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए, सन् १९२० से अब तक संचित अहिंसा-शक्ति का उपयोग करेगी। यह व्यापक संघर्ष महात्मा गांधी के नेतृत्व में होगा। इस प्रस्ताव की अन्तिम स्वीकृति के लिए ७ अगस्त १९४२ को अ॰-भा॰ कांग्रेस कमिटी का अधिवेशन बुलाने के लिए भी आदेश किया गया।

उपर्युक्त निश्चयानुसार, ७ अगस्त १९४२ को, बंबई में कमिटी का अधिवेशन, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के सभापतित्व में, हुआ। ८ अगस्त की बैठक में यह प्रस्ताव, संशोधित तथा कार्य-समिति द्वारा परिवर्द्धित रूप में, कांग्रेस कमिटी द्वारा स्वीकार किया गया।

इस अधिवेशन की समाप्ति पर गांधीजी वाइसराय को पत्र लिखनेवाले थे और वह चाहते थे कि वाइसराय से मिलकर वर्तमान संकट के अन्त करने के उपाय सोचे जायँ। इसी प्रकार वह अमरीकी राष्ट्रपति रूज़वैल्ट, सोवियत रूस के ब्रिटेन-स्थित राजदूत, तथा जनरलिस्सिमो च्यांग् काई-शेक को पत्र भेजनेवाले थे, जिससे कि संयुक्त-राष्ट्रों को भी भारतीय वस्तु स्थिति का ज्ञान होजाय। परन्तु ता॰ ९ अगस्त १९४२ के प्रातःकाल ही महात्मा गांधी तथा अन्य सभी प्रमुख कांग्रेस-नेताओं को बंबई में गिरफ़्तार कर लिया गया।

उसी दिन से भारत के समस्त प्रान्तों में नगरों, क़स्बो एवं ग्रामों में कांग्रेस कार्य-कर्त्ताओं और नेताओं को गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया गया। कांग्रेस कमिटियों तथा खादी भंडारों तक को ग़ैर-क़ानूनी संस्थाएँ घोषित कर दया गया। देश भर में दमन का दावालन बड़े भयंकर रूप में प्रज्वलित होने लगा। उसकी लपटों से कोई भी देशभक्त अछूता न बच सका।