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भारत
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कार्य को स्थगित करदिया। इस प्रकार संघ-विधान (फेडरेशन) का गर्भपात होगया।

(५) वैधानिक संकट––सितम्बर १९३९ में जब ब्रिटेन ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध-घोषणा की तो भारत के गवर्नर-जनरल ने, भारतीय असेम्बली या देश के नेताओं की अनुमति लिये बिना, यहाँ भी यह घोषणा कर दी कि इस युद्ध में भारत ब्रिटेन के साथ लड़ाई में शामिल है। गांधीजी, थोड़े दिन बाद ही, वाइसराय से मिले। उन्होंने नात्सीवाद की पराजय तथा ब्रिटेन और फ्रान्स की विजय की कामना 'हरिजन' में लिखकर प्रकट की। इसके बाद वर्धा से कांग्रेस कार्यसमिति ने एक सप्ताह बाद एक वक्तव्य प्रकाशित किया जिसमें ब्रिटिश सरकार से उसके युद्ध तथा शान्ति के उद्देश्य पूछे तथा यह आग्रह किया कि भारत को स्वाधीन राष्ट्र घोषित कर दिया जाय। परन्तु सरकार ने कांग्रेस की इस माँग को स्वीकार नहीं किया।

अतः जिन आठ प्रान्तों में कांग्रेस-मन्त्रि-मण्डल शासन-संचालन कर रहे थे, उन्हें पद-त्याग का आदेश दिया गया। इस प्रकार नवम्बर १९३९ में भारत में वैधानिक संकट पैदा हो गया। नवम्बर १९३९ से ८ प्रान्तों में गवर्नर ने शासन-विधान को स्थगित कर दिया। प्रान्तीय धारासभाएँ स्थगित कर दी गईं तथा स्वयं गवर्नर आई॰ सी॰ एस॰ सलाहकारों की मदद से शासनकार्य चलाने लगे। (पीछे सन् १९४० में आसाम तथा उड़ीसा में प्रतिक्रियावादियों द्वारा मंत्रि-मण्डल कायम हो गए।)

ब्रिटिश वाइसराय ने सरकार की ओर से ८ अगस्त १९४० को यह घोषणा की कि युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायगा तथा भारतीय एक परिषद् का संगठन कर उसमें भारत के भावी शासन-विधान की रूपरेखा तैयार कर सकेंगे।

घोषणा निस्सार सिद्ध हुई। गान्धीजी ने युद्ध के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने के लिये भाषण-स्वातन्त्र्य की माँग की, जैसी कि ब्रिटेन में युद्ध के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने की, वहाँ के नागरिकों को प्राप्त है। इस सम्बन्ध में भी उनका प्रयास जब विफल हुआ, तो उन्होंने १९४० के अक्टूबर में युद्धविरोधी व्यक्तिगत सत्याह छेड़ दिया, किन्तु उसका प्रयोग बहुत सीमित रखा। अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थिति के सम्बन्ध में इस बीच महात्माजी ने