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बलग़ारिया २०६ के दूसरे बलकान-युद्ध में, बलग़ारिया को पराजित देशों की लूट मे से कुछ भी न मिला । उसके पहले साथी देश सर्विया, यूनान और रूमानिया उसके विरुद्ध होगये । विगत विश्व-युद्ध में बलग़ारिया ने, १६१५ में, जर्मनी का पक्ष लिया । १६१८ में, कुछ सफलता के बाद, उसका पराभव होगया। १९१६ की न्यूएली की सधि में उसे मकदूनिया प्रदेश का कुछ भाग यूनान और यूगोस्लाविया को दे देना पड़ा, क्षतिपूर्ति भी करनी पड़ी और निरस्त्र होना पडा । राजा फर्डिनेन्ड प्रथम, अपने पुत्र बोरिस के हक़ में गद्दी छोडकर, जर्मनी जाकर रहने लगा । स्तम्बुलिस्की के नेतृत्व में क्रान्तिकारी किसान-दल ने सगठन कर सत्ता अपने हाथ में ले ली। चार अन्य दलो सहित, ६ जून १६२३ को, सेना ने विद्रोह कर उसका वध कर डाला । इसके बाद बलग़ारिया मे घोर अशान्ति रही : मार-काट, हत्या, दङ्गा, बमबाज़ी । सन् १६२५ का सूफ़िया के गिरजे का मशहूर बम-काण्ड इन्ही दिनो हुआ । सन् १९२६ मे प्रजासत्तावादी-दल के शासनकाल में देश में कुछ शान्ति होगई । परन्तु १९३१ मे अशान्ति फिर फूट निकली । १६.३३ मे दक्षिण-पन्थी सरकार बनी । अन्त मे, १६.३५ मे, राजा बोरिस ख़ुद अधिनायक बन गया । अन्य बलकानराष्ट्र–रूमानिया, यूगोस्लाविया, तुर्किस्तान तथा यूनान—मित्रतापूर्वक रहते हैं । बलग़ारिया को इन सबके विरुद्ध शिकायतें हैं। वह यूनान तथा यूगोस्लाविया से मकदूनिया को वापस लेना चाहता है । ३१ अगस्त १९४० को दक्षिण दबूजा-प्रदेश बलग्रारिया को वापस मिल गया । प्रारम्भ मे सोवियत रूस के हस्तक्षेप तथा प्रभाव के कारण बलगारिया तटस्थ रहा । इटली-यूनान युद्ध मे मुसोलिनी के गौरव का जो विनाश हुआ, उसकी पुनस्र्थापना के लिये हिटलर ने कहा कि जर्मनी यूनाने पर हमला करेगा । जर्मनी बलग़ारिया पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता था, परन्तु रूस बाधा डालता रहा । सन् १९४१ में बलग़ारिया जर्मनी के प्रभाव मे गया, वह त्रिदल-सन्धि मे शामिल होगया । उसने नात्सी सेना को देश में घुस आने दिया । यही से जर्मनो ने यूगोस्लाविया और यूनान पर हमला कर दिया । बदले मे उसको इन दोनो देशो के वह भूभाग मिल गये, जिनके लिये यह दावा कर रहा था । ५ मार्च १९४१ को बरतानिया ने बलारिया