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नार्डिक
 


धारा ४ के अन्तर्गत बुलाये जाने पर, अपने कर्त्तव्य का पालन न करेगा, उस पर न्यायालय में मुक़द्दमा चलाया जायगा और अपराधी साबित हो जाने पर ५०) तक जुर्माना हो सकेगा। भारतवर्ष के सभी प्रान्तो के प्रत्येक नगर मे नागरिक-रक्षको का सगठन किया गया है।

नार्डिक--यह शब्द स्कैन्डीनेवियन राष्ट्रो (स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क तथा आइसलैंड) के अधिवासियो के लिए प्रयुक्त होता है। इसका जाति-विज्ञान से भी सम्बन्ध जोड़ा जाता है। नार्डिक जाति वह है जिसके व्यक्ति लब-तडगे, गोरे, नीली आँख और लम्बे सिर वाले हो। सामान्यतया इनका निकास स्कैन्डीनेविया से बताया जाता है। यह सिद्धान्त कि नार्डिक जाति के व्यक्ति श्रेष्ठ-गुण-सम्पन्न, साहसी, विचारक तथा विद्वान् होते हैं, और वे ही समस्त योरपीय सभ्यता के जन्मदाता हैं, एक फरान्सीसी लेखक काउट जोसफ द-गोबिन्यू ने, उन्नीसवी शताब्दी मे, बनाया। इस सिद्धान्त का विकास जर्मनवादी अँगरेज़ लेखक हौस्टन स्ट्य अर्ट चेम्बरलेन ने किया। कारलाइल तथा मैडीसन ग्रान्ट ने भी इसकी पुष्टि की। इस सिद्धान्त का जर्मनी में ख़ूब प्रचार रहा। इस सिद्धान्त का मूल प्रयोजन यह है कि नार्डिक लोग समय-समय पर उत्तर से योरप मे आये। उन्होने पश्चिमी तथा दक्षिणी भागो पर विजय प्राप्त की और विजित जातियों के साथ उनका सम्मिश्रण होगया। इस सिद्वान्त के अनुसार योरप मे सभ्यता और संस्कृति का विकास नार्डिक जनों ने ही क्रिया, और जैसे-जैसे नार्डिक जनों का सम्मिश्रण होता गया--वर्णसंकरता बढ़ती गई--वैसे-वैसे योरप की सभ्यता का पतन होता गया। इस सिद्धान्त के पोषको का दावा है कि कला, साहित्य, इतिहास, विज्ञान आदि मे जो महापुरुष हुए हैं, वे सब नार्डिक थे। इन लोगों का यह भी कहना है कि ईसा से २०००वर्ष पूर्व धवल नार्डिक लोगो ने ही यूनान को विजय करके यूनानी सभ्यता का निर्माण किया। इनका तो यहाँ तक कहना है कि भारत, उत्तरी अफरीका तथा कुछ अन्य देशो में भी सभ्यता का प्रसार, पुरातन दन्तकथाओं में वर्णित नार्डिक दरियाई-डाकुओं के, इन देशवासियों से रक्त-मिश्रण से हुआ।

आर्य जाति-सिद्धान्त के सम्बन्ध में भी योरपीय लोगों में दो प्रकार के