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चैकोस्लोवाकिया
 


और रूस के लघु कारपेथियन प्रान्तों को मिलाकर बनाया गया था। इनका क्षेत्रफल १९३८ ई० मे ५२,००० वर्गमील और जनसख्या १,५०,००,००० थी। यह प्रजातत्र राज्य था। इसमे कई अल्प-सख्यक जातियॉ है,परन्तु चैक जाति बहुमत मे थी। उनकी सख्या ७०,००,००० है। स्लोवाक ३०,००,००० से भी कम हैं। चैक यह कहते थे कि चैक और स्लोवाक मिलकर एक राष्ट्र बन जाय। परन्तु स्लोवाक इसके विरुद्ध थे। वह पृथक् राष्ट्र बनाना चाहते थे। मोराविया और बोहेमिया के सीमान्त प्रदेशो(सूडेटनलैण्ड)मे ३२,५०,००० जर्मन रहते थे जो और भी अधिक अधिकार चाहते थे। इनके अतिरिक्त ७,००,००० हगेरियन और ५,५०,००० रूथानियन या यूक्रेनियन थे। इन अल्पसंख्यक जातियो को यद्यपि राजनीतिक और क़ानूनी समान अधिकार प्राप्त थे, तथापि गैर-चैक प्रजा के साथ भेदभाव का बर्ताव किया जाता था,और इसीकी इन सब अल्पसख्यकों को शिकायत थी। जब सन् १९३३ मे हिटलर ने जर्मनी का शासन-भार ग्रहण किया, तब सूडेटनलैण्ड मे जर्मनो ने आन्दोलन शुरू किया। इनका नेता हेनलीन था। सूडेटन जर्मनो ने यह मॉग पेश की कि उन्हे चैकोस्लोवाकिया ने स्वराज्य दे दिया जाय। ब्रिटिश मध्यत्थ संसीमैन के प्रभाव से चैकोस्लोवाकिया की सरकार ने सूडेटन जर्मनों को स्वराज्य दे दिया।परन्तु फिर भी हैनलीन तथा हिटलर ने यह मॉग पेश की कि सूडेटन ज़िलो को जर्मनी मे मिलाने की बात को चैक स्विकार करे। सूडेटनलैण्ड मे घोर सघर्ष और उपद्रव मचा। परन्तु ग्रेटब्रिटेन, फ्रान्स और रूस ने, जिन्होने चैकोस्लोवाकिया की रक्षा के लिए वचन दिया था, और जो उनकी सहायता पर निर्भर था, उसका परित्याग कर दिया। तब म्युनिख मे समझौता हुआ और चैकोस्लोवाकिया को सूडेटनलैण्ड जर्मनी को दे देने के लिये वाध्य किया गया। म्युनिख समझौते के बाद हगरी और पोलैण्ड ने भी मॉगे पेश की और अपने-अपने प्रदेशो को वापस ले लिया। इस प्रकार चैकोस्लोवाकिया का अग-भंग हुआ। राष्ट्रपति वेनेश ने त्यागपत्र दे दिया।किसानवादियो के एक दल ने शासन-सत्ता अपने हाथ मे ले ली। चैक, स्लोवाक तथा रूथानियन सरकारो ने मिलकर एक संघ-राज्य स्थापित किया। अब जर्मनी ने यह आग्रह किया कि, संघ-राज्य नात्सी निती को अपनावे और उसने १० मार्च