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तालाब बनाने का मुहूर्त जबलपुर से प्रतिवर्ष हज़ारों की संख्या में छपने वाले पंचांग से लिया गया है। प्रकाशक हैं: लाला रामस्वरूप रामनारायण पंचांग, ९४, लार्डगंज, जबलपुर, मध्यप्रदेश। बंगाल में यह पंचांग पोजिका या पांजी कहलाता है। गुप्ता प्रेस और विशुद्ध सिद्धान्त प्रकाशन के पंचांग बंगाल में घर-घर में हैं। इसी तरह के पंचांग बनारस, इलाहाबाद, मथुरा, अहमदाबाद, पुणे, नासिक और दक्षिण के भी अनेक शहरों में छपते हैं और समाज की स्मृति में सम्मिलित तालाब और कुएं के काम को प्रारम्भ करने के मुहूर्त दुहराते रहते हैं।

घटोइया बाबा का विवरण हमें होशंगाबाद के श्री राकेश दीवान से मिला है। उनका पता है: कसेरा मोहल्ला, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश। हिन्दी के पुराने शब्दकोषों में ऐसे शब्द अपने पूरे अर्थों के साथ मिलते हैं। इस प्रसंग में हमें श्री रामचन्द्र वर्म्मा के प्रामाणिक हिन्दी कोष, प्रकाशक हिन्दी साहित्य कुटीर, हाथीगली, बनारस से बहुत मदद मिली है।

इस अध्याय का सार तुलसीदासजी की पंक्तियों में सहज ही सिमट जाता है।

संसार सागर के नायक

सब जगह तालाब हैं और इसी तरह सब जगह उन्हें बनाने वाले लोग भी रहे हैं। इन राष्ट्र निर्माताओं को आज के समाज के पढ़े-लिखे लोग और जो लिखते-पढ़ते हैं, वे लोग कैसे भूल बैठे, यह बात आसानी से समझ में नहीं आती।

इन अनाम बना दिए गए लोगों को, फिर से समझने में आज के नाम वाला पढ़ा-लिखा ढांचा कोई कहने लायक मदद नहीं दे पाता। एक तो यह ढांचा इन तक पहुंच नहीं पाता, फिर पहुंच भी जाए तो इन्हें मिस्त्री और राज से ज्यादा पहचानता नहीं। इस ढांचे में इन्हें जगह मिल भी जाए तो वह अकुशल मजदूर और बहुत हुआ तो मजदूर की है। इस ढांचे में ऐसे भी लोग और संस्थाएं हैं जो लोक शक्ति में आस्था रखती हैं पर वे लोक बुद्धि को नहीं मान पातीं। इसलिए इन अनाम बना दिए गए राष्ट्र निर्माताओं तक हम अनाम लोगों के माध्यम से ही पहुंच सके हैं।

राजस्थान में गजधर की समृद्ध पंरपरा को समझने में जैसलमेर के श्री भगवानदास माहेश्वरी और श्री भंवरलाल सुथार तथा जयपुर के श्री रमेश थानवी से बहुत मदद मिली है। उनके पते इस प्रकार

९२ आज भी खरे हैं तालाब