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महाभारत काल के तालाबों में कुरुक्षेत्र का ब्रह्मसर, करनाल की कर्णझील और मेरठ के पास हस्तिनापुर में शुक्रताल आज भी हैं और पर्वों पर यहां लाखों लोग इकट्ठे होते हैं।

रामायण काल के तालाबों में श्रृंगवेरपुर का तालाब प्रसिद्ध रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक श्री बी. बी. लाल ने पुराने साक्ष्य के आधार पर इलाहाबाद से ६० किलोमीटर दूर खुदाई कर इस तालाब को ढूंढ निकाला है। श्री लाल के अनुसार यह तालाब ईसा पूर्व सातवीं सदी में बना था—यानी आज से २७०० बरस पहले।

श्रृंगवेरपुर के तालाब का संक्षिप्त विवरण गांधी शांति प्रतिष्ठान से प्रकाशित पुस्तक 'हमारा पर्यावरण' (१९८८) में तथा विस्तृत विवरण नई दिल्ली के 'सेंटर फॉर साईंस एण्ड एनवायर्नमेंट' द्वारा देश में जल संग्रह के परंपरागत तरीकों पर अक्तूबर १९९० में आयोजित गोष्ठी में श्री लाल द्वारा अंग्रेज़ी में प्रस्तुत लेख में उपलब्ध है।

पन्द्रहवीं से अठारहवीं सदी तक के समाज का, उसके संगठन का, उसके विद्या केन्द्रों का विस्तृत विवरण श्री धर्मपाल द्वारा लिखी गई 'इंडियन साइंस एंड टेक्नालॉजी इन एटीन्थ सेंचुरी' और 'द ब्यूटीफुल ट्री' पुस्तकों में मिलता है। प्रकाशक हैं—बिबलिया इम्पैक्स प्राईवेट लिमिटेड, २/१८ अंसारी रोड, नई दिल्ली-११०००२।

इसी विषय पर एक भिन्न प्रसंग में रुड़की के इंजीनियरिंग कालेज के इतिहास पर लिखी गई एक पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ थामसन कालेज ऑफ इंजीनियरिंग' अच्छा प्रकाश डालती है। बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि देश का पहला इंजीनियरिंग कालेज कलकत्ता, बंबई या दिल्ली जैसे शहरों में नहीं बल्कि हरिद्वार के पास रुड़की नाम के एक बिलकुल छोटे से गांव में सन् १८४७ में खोला गया था। इसके पीछे मुख्य कारण था, इस इलाके में कोई २० वर्ष पहले निकाली गई गंगा नहर। यह नहर सोलानी नाम की एक नदी के ऊपर से भी निकलती है। इस नहर और इस 'अक्वाडक' का पूरा काम उस इलाके में रहने वाले गजधरों ने किया था, जिसे देखकर बाद में यहां के तत्कालीन गवर्नर श्री थामसन ने इन जैसे प्रतिभाशाली गजधरों के और उत्तम प्रशिक्षण के लिए रुड़की में ही कालेज खोलने की अनुशंसा ईस्ट इंडिया कम्पनी से की थी। यह देश का ही नहीं, एशिया का पहला इंजीनियरिंग कालेज था। इस पूरे

८९ आज भी खरे हैं तालाब