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यह कहानी सच्ची है, ऐतिहासिक है -

नहीं मालूम ।

पर देश के मध्य भाग में एक बहुत बड़े हिस्से में

यह इतिहास को अंगूठा दिखाती हुई

लोगों के मन में रमी हुई है

पर आंखों की यह चमक ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाती। कूड़न को लगता है कि देर-सबेर राजा तक यह बात पहुंच ही जाएगी और तब पारस छिन जाएगा। तो क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं होगा कि वे खुद जाकर राजा को सब कुछ बता दें।

किस्सा आगे बढ़ता है। फिर जो कुछ घटता है, वह लोहे को नहीं बल्कि समाज को पारस से छुआने का किस्सा बन जाता है।

राजा न पारस लेता है, न सोना। सब कुछ कुड़न को वापस देते हुए कहता है : "जाओ इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना, तालाब बनाते जाना।"

यह कहानी सच्ची है, ऐतिहासिक है- नहीं मालूम। पर देश के मध्य भाग में एक बहुत बड़े हिस्से में यह इतिहास को अंगूठा दिखाती हुई लोगों के मन में रमी हुई है। यहीं के पाटन नामक क्षेत्र में चार बहुत बड़े तालाब आज भी मिलते हैं और इस कहानी को इतिहास की कसौटी पर कसने वालों को लजाते हैं- चारों तालाब इन्हीं चारों भाइयों के नाम पर हैं। बुढ़ागर में बूढ़ा सागर है, मझगवां में सरमन सागर है, कुआंग्राम में कौंराई



आज भी खरे हैं तालाब