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आज बिलावली तालाब में जहाज उड़ाए जा सकते हैं।

२५ अप्रैल, १९९० को इंदौर से ५० टैंकर पानी लेकर रेलगाड़ी देवास आई। स्थानीय शासन मंत्री की उपस्थिति में ढोल नगाड़े बजा कर पानी की रेल का स्वागत हुआ। मंत्रीजी ने रेलवे स्टेशन आई 'नर्मदा' का पानी पीकर इस योजना का उद्घाटन किया। संकट के समय इससे पहले भी गुजरात और तमिलनाडु के कुछ शहरों में रेल से पानी पहुंचाया गया है पर देवास में तो अब हर सुबह पानी की रेल आती है, टैंकरों का पानी पंपों के सहारे टंकियों में चढ़ता है और तब शहर में बंटता है।

रेल का भाड़ा हर रोज़ चालीस हज़ार रुपया है। बिजली से पानी ऊपर चढ़ाने का खर्च अलग और इंदौर से मिलने वाले पानी का दाम भी लग जाए तो पूरी योजना दूध के भाव पड़ेगी। लेकिन अभी मध्य प्रदेश शासन केन्द्र शासन से रेल भाड़ा माफ़ करवाता जा रहा है। दिल्ली के लिए दूर गंगा का पानी उठा कर लाने वाला केन्द्र शासन अभी मध्य प्रदेश के प्रति उदारता बरत रहा है। श्री मनमोहन सिंह की नई 'उदारवादी' नीति रेल और बिजली के दाम चुकाने को कह बैठी तो देवास को नरकवास बनने में कितनी देरी लगेगी?

पानी के मामले में निपट बेवकूफी के उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। मध्य प्रदेश के ही सागर शहर को देखें। कोई ६०० बरस पहले लाखा बंजारे द्वारा बनाए गए सागर नामक एक विशाल तालाब के किनारे बसे इस शहर का नाम सागर ही हो गया था। आज यहां नए समाज की पांच बड़ी प्रतिष्ठित

८५ आज भी खरे हैं तालाब