पृष्ठ:Aaj Bhi Khare Hain Talaab (Hindi).pdf/७९

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

उपयोग नहीं हो सकता। न तो उससे पानी निकालेंगे और न उसे पार करेंगे। विवाह में क्षेत्र के सभी लोग, सारा गांव पाल पर उमड़ आता है। आसपास के मंदिरों की मिट्टी लाई जाती है, गंगा जल आता है और इसी के साथ अन्य पांच या सात कुओं या तालाबों का जल मिलाकर विवाह पूरा होता है। कहीं-कहीं बनाने वाले अपने सामर्थ्य के हिसाब से दहेज तक का प्रबंध करते हैं।

कजलियां

विवाहोत्सव की स्मृति में भी तालाब पर स्तंभ लगाया जाता है। बहुत बाद में जब तालाब की सफाई-खुदाई दुबारा होती है, तब भी उस घटना की याद में स्तंभ लगाने की परंपरा रही है।

आज बड़े शहरों की परिभाषा में आबादी का हिसाब केन्द्र में है। पहले बड़े शहर या गांव की परिभाषा में उसके तालाबों की गिनती होती थी। कितनी आबादी का शहर या गांव है, इसके बदले पूछा जाता था कितने तालाबों का गांव है। छत्तीसगढ़ी में बड़े गांव के लिए कहावत है कि वहां 'छै आगर छै कोरी' यानी ६ बीसी और ६ अधिक, १२० और ६, या १२६ तालाब होने चाहिए। आज के बिलासपुर ज़िले के मल्हार क्षेत्र में, जो ईसा पूर्व बसाया गया था, पूरे १२६ तालाब थे। उसी क्षेत्र में रतनपुर (दसवीं से बारहवीं शताब्दी), खरौदी (सातवीं से बारहवीं शताब्दी), रायपुर के आरंग और कुबरा और सरगुजा ज़िले के दीपाडीह गांव में आज आठ सौ, हज़ार बरस बाद भी सौ, कहीं-कहीं तो पूरे १२६ तालाब गिने जा सकते हैं।

इन तालाबों के दीर्घ जीवन का एक ही रहस्य था—ममत्व। यह मेरा है, हमारा है। ऐसी मान्यता के बाद रखरखाव जैसे शब्द छोटे लगने लगेंगे। भुजलिया के आठों अंग पानी में डूब सकें—इतना पानी ताल में रखना—ऐसा गीत गाने वाली, ऐसी कामना करने वाली स्त्रियां हैं तो उनके पीछे ऐसा समाज भी रहा है जो अपने कर्तव्य से इस कामना को पूरा करने का वातावरण बनाता था। घरगैल, घरमैल यानी सब घरों के मेल से तालाब का काम होता था।

सबका मेल तीर्थ है। जो तीर्थ न जा सकें, वे अपने यहां तालाब बना कर ही पुण्य ले सकते हैं। तालाब बनाने वाला पुण्यात्मा है, महात्मा

७६ आज भी खरे हैं तालाब