पृष्ठ:Aaj Bhi Khare Hain Talaab (Hindi).pdf/६२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

में ६४, कोलायत तहसील में २० और नोखा क्षेत्र में १२३ गांवों के नाम 'सर' पर आधारित हैं। एक तहसील लूणकरणसर के नाम में ही सर है और यहां अन्य ४५ गांवों का नामकरण सर पर है। बचे जिन गांवों के नाम में सर नहीं है, उन गांवों में भी तालाब ज़रूर मिलेंगे। हां दो-चार ऐसे भी गांव हैं, जिनके नाम में सर है लेकिन वहां सरोवर नहीं है। गांव में सरोवर बन जाए—ऐसी इच्छा गांव के नामकरण के समय रहती ही थी, ठीक उसी तरह जैसे बेटे का नाम रामकुमार, बेटी का नाम पार्वती आदि रखते समय माता-पिता अपनी संतानों में इनके गुणों की कामना कर लेते हैं।

अधिकांश गांवों में पूरा किया जा चुका कर्तव्य और जहां कहीं किसी कारण से पूरा न हो पाए, उसे निकट भविष्य में पूरा होते देखने की कामना ने मरुभूमि के समाज को पानी के मामले में एक पक्के संगठन में ढाल दिया था।

राजस्थान के ग्यारह ज़िलों—जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली, बीकानेर, चुरु, श्रीगंगानगर, झुंझुनूं, जालौर, नागौर और सीकर में मरुस्थल का विस्तार मिलता है। लेकिन मरुस्थल अपने को समेट कर सघन बनता है जैसलमेर, बाड़मेर और बीकानेर में। यहीं देश की सबसे कम वर्षा है, सबसे ज़्यादा गरमी है, रेत की तेज़ आंधी है और 'पंख' लगाकर यहां से वहां उड़ने वाले रेत के विशाल टीले, धोरे हैं। इन तीन ज़िलों में जल का सबसे ज़्यादा अभाव होना चाहिए था। लेकिन मरुभूमि के इन गांवों का वर्णन करते समय जनगणना की रिपोर्ट को भी भरोसा नहीं हो पाता कि यहां शत-प्रतिशत गांवों में पानी का प्रबंध है। और यह प्रबंध अधिकांश गांवों में मरुभूमि के समाज ने अपने दम पर किया था। यह इतना मज़बूत था कि उपेक्षा के ताज़े लंबे दौर के बाद भी यह किसी न किसी रूप में टिका हुआ है।

पानी के मामले में हर विपरीत परिस्थिति में
उसने जीवन की रीत खोजने का प्रयत्न किया।
और मृगतृष्णा को झुठलाते हुए
जगह-जगह तरह-तरह के प्रबंध किए।

गजेटियर में जैसलमेर का वर्णन बहुत डरावना है: 'यहां एक भी बारामासी नदी नहीं है। भूजल १२५ से २४० फुट और कहीं-कहीं तो ४०० फुट नीचे है। वर्षा अविश्वसनीय रूप से कम है, सिर्फ १६.४ सेंटीमीटर। पिछले ७० वर्षों के अध्ययन के अनुसार वर्ष के ३६५ दिनों में से ३५५

५९ आज भी खरे हैं तालाब