पोखर प्रायः छोटे तालाब के लिए ही काम आता है पर बरसाने (मथुरा) में यह एक बड़े तालाब के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। राधाजी के हाथ की हल्दी धोने का प्रसंग है। पोखर का पानी पीला हो गया। नाम पड़ गया पीली पोखर।
रंग से स्वाद पर आएं। महाराष्ट्र के महाड़ इलाके में एक तालाब का पानी इतना स्वादिष्ट था कि उसका नाम ही चवदार ताल यानी जायकेदार तालाब हो गया। समाज के पतन के दौर में इस तालाब पर कुछ जातियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लग गया था। सन् १९२७ में चवदार ताल से ही भीमरावजी अंबेडकर ने अछूतोद्धार का आंदोलन प्रारंभ किया था।
विचित्र तालाबों में आबू पर्वत (राजस्थान) के पास नखी सरोवर भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे देवताओं और ऋषियों ने अपने नखों से ही खोद डाला था। जिस समाज में साधारण माने जाने वाले लोग भी तालाब बनाने में पीछे नहीं रहते थे, वहां देवताओं का योगदान सिर्फ एक तालाब का कैसे होता?
गढ़वाल में सहस्रताल नामक एक क्षेत्र में सचमुच सैंकड़ों तालाब हैं। हिमालय का यह इलाका १० हज़ार से १३ हज़ार फुट की ऊंचाई पर है। यहां प्रकृति का एक रूप, वनस्पति विदा लेने की तैयारी करता है और दूसरा रूप हिम, अपना राज जमाने की। आस-पास दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं है। निकटतम गांव ५ हज़ार फुट नीचे है, जहां के लोग बताते हैं कि सहस्रताल उनने नहीं, देवताओं ने ही बनाए हैं।
जयपुर के पास बना गोला ताल विचित्र घटनाओं में से निकले तालाबों में सचमुच सचित्र वर्णन करने लायक है। यह गोल है इसलिए गोला नहीं कहलाया। कहा जाता है कि यह एक तोप के गोले से बना था। तब जयपुर शहर नहीं बसा था। आमेर थी राजधानी। किला था जयगढ़। जयगढ़ के राजा ने जयबाण नामक एक बड़ी तोप बनाई थी। इसकी मारक क्षमता बहुत अधिक थी। इसका गोला २० मील की दूरी तक जा सकता था। तोप जयगढ़ किले के भीतर ही बने तोप कारखाने में ढली थी। मारक क्षमता के परीक्षण के लिए इसे किले के एक बुर्ज पर चढ़ाया गया और गोला दागा गया। गोला गिरा २० मील दूर चाकसू नामक एक स्थान पर। विस्फोट इतना बड़ा था कि एक लंबा चौड़ा और गहरा गड्ढा बन गया। अगली बरसात में इसमें पानी भरा और फिर यह कभी सूखा नहीं।
इस तरह जयबाण तोप ने बनाया गोला ताल। जयबाण तोप फिर कभी
५६ आज भी खरे हैं तालाब