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से भोपाल होकर इटारसी जाते समय मंडीद्वीप नामक यह स्थान एक ज़माने में भोपाल ताल का लाखेटा था। कभी लगभग २५० वर्गमील में फैला यह विशाल ताल होशंगशाह के समय में तोड़ दिया गया था। आज यह सिकुड़ कर बहुत छोटा हो गया है फिर भी इसकी गिनती देश के बड़े तालाबों में ही होती है। इसके सूखने से ही मंडीद्वीप द्वीप न रह कर एक औद्योगिक नगर बन गया है।

प्रणाली और सारणी तालाब से जुड़े दो शब्द हैं, जिन्होंने अपने अर्थों का लगातार विस्तार किया है। कभी ये तालाब आदि से जुड़ी सिंचाई व्यवस्था के लिए बनी नालियों के नाम थे। आज तो शासन की भी प्रणाली है और रेलों का समय बताने वाली सारणी भी!

सिंचाई की प्रमुख नाली जहां से निकलती है वह जगह मुख है, मोखा है और मोखी भी है। मुख्य नहर रजबहा कहलाती है।

बहुत ही विशिष्ट तालाबों की रजबहा इस लोक के राज से निकल कर देवलोक को भी छू लेती थी। तब उसका नाम रामनाल हो जाता है। जैसलमेर के धुत्त रेगिस्तान इलाके में बने घने सुंदर बगीचे 'बड़ा बाग' की सिंचाई जैतसर नामक एक बड़े तालाब से निकली रामनाल से ही होती रही है। यहां की अमराई और बाग सचमुच इतना घना है कि मरुभूमि में आग उगलने वाला सूरज यहां आता भी होगा तो सिर्फ ठंडक लेने और वह भी हरे रंग में रंग कर।

रजबहा से निकलने वाली अन्य नहरें बहतोल, बरहा, बहिया, बहा और बाह भी कहलाती हैं। पानी निकलने के रास्ते पर बाद में बस गए इलाके का नामकरण भी इन्हीं के आधार पर हुआ है। जैसे आगरा की बाह नामक तहसील।

सिंचाई के लिए बने छोटे तालाबों में भी पानी निकालने का बहुत व्यवस्थित प्रबंध होता रहा है। पाल के किसी हिस्से में से आरपार निकाली गई नाली का एक सिरा तालाब की तरफ से डाट लगाकर बंद रखा जाता है। जब भी पानी निकालना हो, डाट खोल दिया जाता है। लेकिन ऐसा करने में किसी को पानी में कूदना पड़ेगा, उस गहराई तक जाकर डाट हटाना होगा और फिर इसी तरह बंद करना पड़ेगा। इस साहसिक काम को सर्व सुलभ बनाता है डाट नामक अंग।

डाट पाल से तालाब के भीतर की तरफ बना एक छोटा-सा लेकिन गहरा हौज़नुमा ढांचा होता है। यह वर्गाकार हौज़ प्राय: दो से तीन हाथ

३८ आज भी खरे है तालाब