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उसे खाली करना है। यह काम अफरा करती है और पेट को फटने से, तालाब को, पाल को टूटने से बचाती है।

इस अंग के कई नाम हैं। अफरा कहीं अपरा भी हो जाता है। उबरा, ओबरा भी है जो शायद ऊबर, उबरने, बचने-बचाने के अर्थ में बने हैं। राजस्थान में ये सब नाम चलते हैं। अच्छी बरसात हुई और तालाब में पानी इतना आया कि अपरा से निकलने लगे तो उसे अपरा चलना और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में इसे चादर चलना भी कहते हैं। छत्तीसगढ़ में इस अंग का नाम है छलका—पाल को तोड़े बिना जहां से पानी छलक जाए।

इस अंग का पुराना नाम उच्छवास था, छोड़ देने के अर्थ में। निकास से यह निकासी भी कहलाता है। पर ठेठ संस्कृत से आया है नेष्टा। यह राजस्थान के थार क्षेत्र में, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर में सब जगह, गांवों में, शहरों में बिना एक मात्रा भी खोए नेष्टा ही कहलाता है। सीमा पार कर सिंध में भी यह इसी नाम से चलता है। यह दक्षिण में कालंगल है

शिवसागर की कलात्मक नेष्टा

३१ आज भी खरे हैं तालाब