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घर, खज़ाना। तालाब का खज़ाना है आगर, जहां सारा पानी आकर जमा होगा। राजस्थान में यह शब्द तालाब के अलावा भी चलता है। राज्य परिवहन की बसों के डिपो भी आगर कहलाते हैं। आगरा नाम भी इसी से बना है। आगर नाम के कुछ गांव भी कई प्रदेशों में मिल जाएंगे।

आगौर और आगर, सागर के दो प्रमुख अंग माने गए हैं। इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ और नामों से भी जाना जाता है। कहीं ये शब्द मूल संस्कृत से घिसते-घिसते बोली में सरल होते दिखते हैं तो कहीं ठेठ ग्रामीण इलाकों में बोली को सीधे संस्कृत तक ले जाते हैं। आगौर कहीं आव है, तो कहीं पायतान, यानी जहां तालाब के पैर पसरे हों। आयतन है जहां यह पसरा हिस्सा सिकुड़ जाए यानी आगर। इसे कहीं-कहीं भराव भी कहते हैं। आंध्र प्रदेश में पहुंच कर यह परिवाह प्रदेशम् कहलाता है। आगर में आगौर से पानी आता है पर कहीं-कहीं आगर के बीचोंबीच कुआं भी खोदते हैं। इस स्रोत से भी तालाब में पानी आता है। इसे बोगली कहते हैं। बिहार में बोगली वाले सैंकड़ों तालाब हैं। बोगली का एक नाम चूहर भी है।

जल के इस आगर की, कीमती खज़ाने की रक्षा करती है पाल। पाल शब्द पालक से आया होगा। यह कहीं भींड कहलाया और आकार में छोटा हुआ तो पींड। भींड का भिंड भी है बिहार में। और कहीं महार भी। पुश्ता शब्द बाद में आया लगता है। कुछ क्षेत्रों में यह पार है। नदी के पार की तरह किनारे के अर्थ में। पार के साथ आर भी है—आर, पार और तालाब के इस पार से उस पार को आर-पार या पार-आर के बदले पारावार भी कहते हैं। आज पारावार शब्द तालाब या पानी से निकल कर आनंद की मात्रा बताने के लिए उपयोग में आ रहा है, पर पहले यह पानी के आनंद का पारावार रहा होगा।

पार या पाल बहुत मज़बूत होती है पर इस रखवाले की भी रखवाली न हो तो आगौर से आगर में लगातार भरने वाला पानी इसे न जाने कब पार कर ले और तब उसका प्रचंड वेग और शक्ति उसे देखते ही देखते मिटा सकता है। तालाब को टूटने से बचाने वाले इस अंग का नाम है अफरा। आगर तो हुआ तालाब का पेट। यह एक सीमा तक भरना ही चाहिए, तभी तालाब का साल-भर तक कोई अर्थ है। पर उस सीमा को पार कर ले तो पाल पर खतरा है। पेट पूरा भर गया, अफर गया तो अब

३० आज भी खरे हैं तालाब