पृष्ठ:Aaj Bhi Khare Hain Talaab (Hindi).pdf/३२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
सागर के आगर

तालाब एक बड़ा शून्य है अपने आप में।

लेकिन तालाब पशुओं के खुर से बन गया कोई ऐसा गड्ढा नहीं कि उसमें बरसात का पानी अपने आप भर जाए। इस शून्य को बहुत सोच-समझ कर, बड़ी बारीकी से बनाया जाता रहा है। छोटे से लेकर एक अच्छे बड़े तालाब के कई अंग-प्रत्यंग रहते थे। हरेक का अपना एक विशेष काम होता था और इसलिए एक विशेष नाम भी। तालाब के साथ-साथ यह उसे बनाने वाले समाज की भाषा और बोली की समृद्धि का भी सबूत था। पर जैसे-जैसे समाज तालाबों के मामले में गरीब हुआ है, वैसे-वैसे भाषा से भी ये नाम, शब्द धीरे-धीरे उठते गए हैं।

बादल उठे, उमड़े और पानी जहां गिरा, वहां कोई एक जगह ऐसी होती है जहां पानी बैठता है। एक क्रिया है: आगौरना, यानी एकत्र करना। इसी से बना है आगौर। आगौर तालाब का वह अंग है, जहां से उसका पानी आता है। यह वह ढाल है, जहां बरसा पानी एक ही दिशा की ओर चल पड़ता है। इसका एक नाम पनढाल भी है। आगौर को मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पैठू, पौरा या पैन कहते हैं। इस अंग के लिए इस बीच में, हम सबके बीच, हिंदी की पुस्तकों, अखबारों, संस्थाओं में एक नया शब्द चल पड़ा है—जलागम क्षेत्र। यह अंग्रेज़ी के कैचमेंट से लिया गया अनुवादी, बनावटी और एक हद तक गलत शब्द है। जलागम का अर्थ वर्षा ऋतु रहा है।

आगौर का पानी जहां आकर भरेगा, उसे तालाब नहीं कहते। वह है आगर। तालाब तो सब अंग-प्रत्यंगों का कुल जोड़ है। आगर यानी

२९ आज भी खरे हैं तालाब