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२२ आज भी खरे हैं तालाब

नायक, बड़ा नायक, छोटा नायक और फिर तलाविया, गरासिया - सब तालाब और पानी के काम के नायक माने जाते थे। नायक या महाराष्ट्र कोंकण में नाईक उपाधि, बंजारा समाज में भी थी। वन में विचरने वाले बनचर, बिनचर धीरे-धीरे बंजारे कहलाने लगे। ये आज दयनीय बना दिए गए हैं पर एक समय ये एक शहर से दूसरे शहर सैंकड़ों पशुओं पर माल लाद कर व्यापार करने निकलते थे। गन्ने के क्षेत्र से धान के क्षेत्र में गुड़ ले जाते और फिर धान लाकर दूसरे क्षेत्रों में बेचते थे।

शाहजहां के वज़ीर आसफजहां जब सन् १६३० में दक्खन आए थे तो उनकी फौज का सामान भंगी-जंगी नाम के नायक बंजारों के बैलों पर लदा था। बैलों की संख्या थी एक लाख अस्सी हज़ार। भंगी-जंगी के बिना शाही फौज हिल नहीं सकती थी। उनकी प्रशंसा में वज़ीर आसफजहां ने उन्हें सोने से लिखा एक ताम्रपत्र भेंट किया था।

वर्णनों में कुछ अतिशयोक्ति होगी पर इनके कारवां में पशु इतने होते कि गिनना कठिन हो जाता था। तब इसे एक लाख पशुओं का कारवां मान लिया जाता था और ऐसी टोली का नायक लाखा बंजारा कहलाता था। हज़ारों पशुओं के इस कारवां को सैकड़ों लोग लेकर चलते थे। इसके एक दिन के पड़ाव पर पानी की कितनी मांग होती, इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है। जहां ये जाते, वहां अगर पहले से बना तालाब नहीं होता तो फिर वहां तालाब बनाना वे अपना कर्तव्य मानते। मध्य प्रदेश के सागर नाम की जगह में बना सुंदर और बड़ा तालाब ऐसे ही किसी लाखा बंजारे ने बनाया था। छत्तीसगढ़ में आज भी कई गांवों में लोग अपने तालाब को किसी लाखा बंजारे से जोड़ कर याद करते हैं। इन अज्ञात लाखा बंजारों के हाथों से बने ज्ञात तालाबों की सूची में कई प्रदेशों के नाम समा जाएंगे।

गोंड समाज का तालाबों से गहरा संबंध रहा है। महाकौशल में गोंड का यह गुण जगह-जगह तालाबों के रूप में बिखरा मिलेगा। जबलपुर के पास कुड़न द्वारा बनाया गया ताल आज कोई एक हज़ार बरस बाद भी काम दे रहा है। इसी समाज में रानी दुर्गावती हुई जिनने अपने छोटे से काल में एक बड़े भाग को तालाबों से भर दिया था।

गोंड न सिर्फ खुद तालाब बनाते-बनवाते थे, बल्कि तालाब बनाने वाले दूसरे लोगों का भी खूब सम्मान करते थे। गोंड राजाओं ने उत्तर भारत से कोहली समाज के लोगों को आज के महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले में