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रही है, आगौर से आने वाला पानी जहां पाल पर ज़ोरदार बल आजमा सकता है, वहीं पर पाल में भी बल दिया गया है। इसे 'कोहनी' भी कहते हैं। पाल यहां ठीक हमारी कोहनी की तरह मुड़ जाती है।

जगह गांव के पास ही है तो भोजन करने लोग घर जाते हैं। जगह दूर हुई तो भोजन भी वहीं पर। पर पूरे दिन गुड़ मिला मीठा पानी सबको वहीं मिलता है। पानी का काम प्रेम का काम है, पुण्य का काम है, इसमें अमृत जैसा मीठा पानी ही पिलाना है, तभी अमृत जैसा सरोवर बनेगा।

इस अमृतसर की रक्षा करेगी पाल। वह तालाब की पालक है। पाल नीचे कितनी चौड़ी होगी, कितनी ऊपर उठेगी और ऊपर की चौड़ाई कितनी होगी- ऐसे प्रश्न गणित या विज्ञान का बोझ नहीं बढ़ाते। अभ्यस्त आंखों के सहज गणित को कोई नापना ही चाहे तो नींव की चौड़ाई से ऊंचाई होगी आधी और पूरी बन जाने पर ऊपर की चौड़ाई कुल ऊंचाई से आधी होगी।

मिट्टी का कच्चा काम पूरा हो रहा है। अब पक्के काम की बारी है। चुनकरों ने चूने को बुझा लिया है। गरट लग गई है। अब गारा तैयार हो रहा है। सिलावट पत्थर की टकाई में व्यस्त हो गए हैं। रक्षा करने वाली पाल की भी रक्षा करने के लिए नेष्टा बनाया जाएगा। नेष्टा यानी वह जगह जहां से तालाब का अतिरिक्त पानी पाल को नुकसान पहुंचाए बिना बह जाएगा। कभी यह शब्द 'निसृष्ट' या 'निस्तरण" या 'निस्तार' रहा होगा। तालाब बनाने वालों की जीभ से कटते-कटते यह घिस कर 'नेष्टा" के रूप में इतना मज़बूत हो गया कि पिछले कुछ सैंकड़ों वर्षों से इसकी एक भी मात्रा टूट नहीं पाई है।

नेष्टा पाल की ऊंचाई से थोड़ा नीचा होगा, तभी तो पाल को तोड़ने से पहले ही पानी को बहा सकेगा। ज़मीन से इसकी ऊंचाई, पाल की ऊंचाई के अनुपात में तय होगी। अनुपात होगा कोई १० और ७ हाथ का।

पाल और नेष्टा का काम पूरा हुआ और इस तरह बन गया तालाब का आगर। आगौर का सारा पानी आगर में सिमट कर आएगा। अभ्यस्त अांखें एक बार फिर आगौर और आगर को तौल कर देख लेती हैं। आगर की क्षमता आगौर से आने वाले पानी से कहीं अधिक तो नहीं, कम तो नहीं। उत्तर हां में नहीं आता।

आखिरी बार डुगडुगी पिट रही है। काम तो पूरा हो गया है पर आज फिर सभी लोग इकट्ठे होंगे, तालाब की पाल पर। अनपूछी ग्यारस को



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आज भी खरे हैं तालाब