संपर्क के लिए: ७१९, प्रेम गली, १-डी सुभाष रोड, गांधी नगर, दिल्ली-३१। अशोक प्रेस, २८१०, गली मातावाली, किनारी बाज़ार, चांदनी चौक, दिल्ली से १९९२ में प्रकाशित इस गीतमाला के पहले संस्करण में इस विवाह गीत का उल्लेख है।
इंदौर और देवास शहर में पिछले बीस वर्षों से बढ़ते जल संकट की अधिकांश जानकारी वहां के अखबारों में छपे लेखों और संपादक के नाम लिखे गए पत्रों में से ली गई है। देवास की प्रारम्भिक सूचनाएं हमें श्री बृजेश कानूनगो से मिली थीं। उनका पता है: १५१, विजय नगर, देवास, मध्य प्रदेश। सागर शहर और इसके आसपास के इलाकों में की गई यात्राओं से यहां के तालाबों के बारे में बहुत कुछ देखने समझने मिला। इसके अलावा श्री पंकज चतुर्वेदी के लेखों से भी मदद मिली है।
मध्य प्रदेश के कोई १५० शहरों में अप्रैल के पहले हफ्ते से ही जल संकट के आसार दिखने लगते हैं और शासन इन शहरों में पानी ढोकर ले जाने की योजनाएं बनाने लगता है।
अपनी राजधानी भी पानी के मामले में दिनोंदिन निर्धन साबित हो रही है। यमुना और अब तो गंगा से मंगवाया गया पानी भी कम पड़ रहा है। बाहरी और दिल्ली देहात के लिए बना हैदरपुर जलकल केन्द्र पानी के अभाव में अप्रैल ९३ तक चालू नहीं हो सका था। सुधी पाठक ध्यान दें कि ये वही इलाके हैं, जहां आज से कोई ५०-६० वर्ष पहले तक तालाबों और पानी की कोई कमी नहीं थी।
पुस्तक का चौथा संस्करण निकलने तक दिल्ली में जल संकट और भी बढ़ा है और उसी के साथ-साथ सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में उसे हल करने की चिंता भी। सेन्टर फॉर साईन्स एंड एनवायर्नमेंट जैसी संस्थाओं ने यहां पर जल संग्रह के पुराने और नए तरीकों पर काम प्रारम्भ किया है। दिल्ली के देहाती क्षेत्रों में उपेक्षा की आंधी से बच गए तालाबों की सुध लेने का भी प्रयत्न प्रारम्भ हुआ है।
इस पुस्तक का पहला संस्करण १९९३ में निकला था। और यह चौथा संस्करण २००२ के जुलाई माह में। तब से अब तक जगह-जगह लोगों ने अपने तालाबों को बचाने और नए तालाब बनाने का काम प्रारम्भ किया है। यह सूची बहुत बड़ी है। उसे यहां हम दे नहीं सकेंगे। हम ऐसे प्रयासों के आगे नतमस्तक हैं। लगता है कि धीरे-धीरे हमारे माथे में जमा साद कुछ साफ हो चली है और आज राज्य और समाज को फिर से लगने लगा है कि तालाब आज भी खरे हैं।
१०८ आज भी खरे हैं तालाब