भीतर भुर्ज भारी एक। सांमा मंदिर
शिव का लेख॥ नीचे फतेचंद की साल।
पुखता बणाई कर ख्याल॥ देख्या बाग जो महेरांणा।
मालिक सकल सेवक जांण॥ करता हमेशां इंतजाम।
साधू संत ले बिसराम॥ आछी बगेची रूपनाथ। भीतर
दोय मंदिर साथ॥ जिनके पास बंगला
एक। महोते बख्तसिंह का देख॥ चांडर द्वार
के की साल। ऐसी नहीं हे चौताल॥ जल
अध बीच बंगला काम। महोते फतेसिंह का
नाम॥ मोडा बंगला नीका के। धीरवसिंह महोते काके॥
जाली बंगला पाया के। मनहर भूप
करवाया के॥ भरीया रहत जल दरियाब।
बंगला अधर देखत नाव॥ टीलों कराई हद प्रोल।
ऊपर मंदिर नीचे मोल॥ आगे अजब पठाघट बाट।
जुड़ता औरतों का ठाट॥ भादव कृष्ण कजली
तीज। आये मांह चमकत बीज॥ भरता
गड़ीसर मेला के। आया दोस्तों भेला के॥
मेला जुड़त है भारी के। आवत सकल नर
नारी के॥ मेले तणी सोभा मान। आवत
छती से ही पान॥ त्रीया सकल सज
सिणगार। गावत गीत राग उचार॥ बोलत
हाथ धर गालों के। चलती मस्त गज
चालें के॥ घुल रही-रही अंखियां रंग लाल।
बंदली खूब सोहे भाल। जुलफों बणी नागन
लेख। नयनों बीच काजल रेख॥ सिर पर
अजब सोहे बोर। जलकत चंद्रमा के तोर॥
नीचे झूटणा झैला के। राहता
मीढ़ीयों भेला के॥ कांने डूग्गलों की
झूल॥ नीचे लटकता कनफूल॥ नक में नाथ
हे भारी के। सोभा देत जो सारी के॥
दांतों जड़ी कंचन मेख। मुखड़ों चंद्रमा सो
देख। कंठला कंठ बिच सोहे के। छतियों
देख मन मोहे के॥ कड़ीयों में सोहे
कन्दोर। पतली कमर नाजुक तोर। हथ
में गौखरू हद जोय। देख्यों दिल खुसी
जो होय॥ बुकये बोरखे बाजू के। पहरे
१०४ आज भी खरे हैं तालाब