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और श्री जी.जी. पेज द्वारा चार खंडों में संपादित 'लिस्ट ऑफ मोहम्मडन एंड हिन्दू मान्यूमेंट्स, डैली प्रॉविन्स', सन् १९१३ से भी बहुत मदद मिल सकती है।

खंडवा के कुंडों की जानकारी श्री गोपीनाथ कालभोर, रतन मंजिल, दूधतलाई खंडवा, मध्यप्रदेश से मिली है।

टिहरी गढ़वाल के श्री बिहारीलाल ने हिमालय के तालाबों, चालों से हमें परिचित करवाया। उनकी संस्था, लोक जीवन विकास भारती, बूढ़ा केदार, पो. थाती, टिहरी गढ़वाल अपने अन्य सामाजिक कार्यों के साथ-साथ वहां चालों का चलन फिर से शुरू करने का प्रयत्न कर रही है।

पौड़ी गढ़वाल में पिछले २० वर्षों से काम कर रही 'दूधातोली लोक विकास संस्थान' नामक एक छोटी सी संस्था ने हिमालय के नक्शे पर चालों को फिर से उतारने का बड़ा काम किया है। पिछले ९ वर्षों में इस संस्था ने श्री सच्चिदानन्द भारती के नेतृत्व में लगभग ७ हजार चालें बनाकर यहां के कई गांवों में जल संकट को थाम लिया है। चालों के कारण जमा हुए सम्पन्न जल भंडार ने अनेक गांव में खेतों को सुधारा है, जंगल घने किए हैं और चारे का भंडार बढ़ाया है। हर वर्ष गर्मी में इन इलाकों में लगने वाली वनों की आग भी चाल वाले क्षेत्रों में अब नहीं लगती। वहां का नारा है: "खेत, जंगल, घास, पाणी यूं का बिना योजना काणी"।

श्री मैथिलीशरण गुप्त के चिरगांव के चोपरा का विवरण श्री गुणसागर सत्यार्थी से प्राप्त हुआ है।

नकरा और गधया और नदी से भरने वाले नदया तालों की जानकारी गांधी स्मारक निधि के श्री मिश्रीलाल से मिली है।

फुटेरा ताल जनसत्ता, नई दिल्ली के सुधीर जैन से, बराती ताल, 'बिहार की नदियां' पुस्तक से और हा-हा पंचकुमारी ताल और लखीसराय के ३६५ तालाबों से संबंधित सूचनाएं हमें श्री निर्मलचंद्र से मिली हैं।

जायकेदार तालाब पर इन्दौर के दैनिक पत्र 'नई दुनिया', १७ मई १९९१ के अंक में छपे श्री बाबूराव इंगले के लेख ने तालाबों के सहस्रनामों में अलग ही जायका भर दिया।

बरसाने की पीली पोखर की जानकारी सुश्री बिमला देवी से प्राप्त हुई है। उनसे सम्पर्क : द्वारा डॉ. सुभाष चंद तोमर, चक्कीवाला कटरा, बरसाना, जिला मथुरा, उत्तरप्रदेश पर किया जा सकता है।

१०० आज भी खरे हैं तालाब