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साफ़ माथे का समाज

तालाबों के आगौर को साफ रखने की प्रारम्भिक जानकारी में श्री शुभू पटवा का विशेष योगदान रहा। मध्य प्रदेश और बिहार में तालाबों की साफ-सफाई की अधिकांश सामग्री श्री राकेश दीवान और श्री तपेश्वर भाई से प्राप्त हुई है। इसी संदर्भ में बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, कदम कुआं, पटना से प्रकाशित श्री हवलदार त्रिपाठी 'सहृदय' की पुस्तक 'बिहार की नदियां' भी देखी जा सकती है।

दक्षिण में प्रचलित धर्मादा और मान्यम् प्रथा के विस्तार को समझने में इन ग्रंथों से भी मदद मिली है: तमिलनाडु सरकार द्वारा १९७७ में प्रकाशित—'हिस्ट्री ऑफ लैंड रेवेन्यू सैटलमेंट एंड अबॉलिशन ऑफ इंटरमिडियरी टैन्योर्स इन तमिलनाडु'। इस किताब के बारे में इतना लिखना आवश्यक है कि अपने किस्म की यह एक ही पुस्तक है। आज की थकी हुई सरकारों और समाज को चलाने वाली उनकी योजनाओं से बिलकुल अलग यह समाज में रची-पची संस्थाओं और परंपराओं का विस्तृत चित्रण करती है। इसके अलावा श्री डब्ल्यू फ्रांसिस द्वारा सन् १९०६ में लिखे 'साउथ आरकाट जिला गजेटियर' में भी कुछ जानकारी है।

गैंगजी कल्ला का प्रसंग हमें फलौदी, जोधपुर के श्री शिवरतन थानवी से और गैंगजी की निगरानी में आने वाले क्षेत्र का, तालाबों का परिचय हमें उनके सुपुत्र श्री जयप्रकाश थानवी के साथ की गई यात्राओं से मिला है। गैंगजी कल्ला जैसी विभूतियां प्राय: हर गांव और शहर में तालाबों और नदियों के घाट पर उपस्थित रहती थीं और वर्ष भर इनकी निगरानी करती थीं। घाटों पर अखाड़ों का चलन भी इसी कारण रहा होगा। यहां यह भी याद रखना चाहिए कि उन दिनों दमकल विभाग या पुलिस बल जैसे संगठन नहीं हुआ करते थे। फिर भी मेलों में जुटने वाले लाखों लोगों की सुरक्षा का इंतजाम ऐसे ही स्वयंसेवकों के दम पर होता था। सन् १९०० तक दिल्ली में यमुना के घाटों पर अखाड़े के स्वयंसेवकों का पहरा रहा करता था। इसी तरह यहां के तालाब और बावड़ियां अखाड़ों की देखरेख में साफ रखी जाती थीं। आज जहां दिल्ली विश्वविद्यालय है वहां मलकागंज के पास कभी दीना का तालाब था। इसके अखाड़े में देश विदेश के पहलवानों के दंगल आयोजित थे। दीना के तालाब की प्रारम्भिक जानकारी हमें श्री कैलाश जैन से मिली थी। फिर हमें इस तालाब की विस्तृत जानकारी आटो रिक्शा

९८ आज भी खरे हैं तालाब