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आगर और पाल से संबंधित शब्दों की जानकारी श्री रमेश थानवी और श्री तपेश्वर भाई, पोस्ट जगतपुरा, वाया घोंघरडीहा, मधुबनी, बिहार से मिली है।

शिवसागर की कलात्मक नेष्टा हमें श्री जयप्रकाश थानवी के सौजन्य से देखने को मिली। उनका पता है: मोची गली, फलौदी जोधपुर।

साद रोकने के अंगों का प्रारंभिक विवरण श्री शुभू पटवा और उन्हीं के गांव भीनासर, बीकानेर के श्री नारायण परिहार और जनसत्ता के संपादक श्री ओम थानवी से मिला है।

साद के अन्य नाम कपा और कापू भी हैं। साद निकालने की व्यवस्था उतनी ही पुरानी है जितने पुराने हैं तालाब। वास्तुशास्त्र के संस्कृत ग्रंथ 'मानसार' में इसे मीढ़-विधान कहा गया है।

पठियाल, हथनी और घटोइया बाबा से संबंधित सामग्री श्री भगवानदास माहेश्वरी; श्री दीनदयाल ओझा, केलापाड़ा, जैसलमेर से हुई बातचीत पर आधारित है।

स्तम्भों की विविधता को समझने में श्री राकेश दीवान और उनकी बहन सुश्री भारती दीवान से बहुत मदद मिली है।

'पुरुष' नाप की बारीकियां हमें श्री नारायण परिहार से समझने को मिली हैं। इस संबंध में वास्तुशिल्प के प्राचीन ग्रंथ 'समरांगन सूत्रधार' में भी अणु से लेकर योजन तक के नाप देखे जा सकते हैं।

लाखेटा के बारे में पूरी जानकारी उस्ताद निजामुद्दीनजी से मिली है। उनका पता है: बाल भवन, कोटला मार्ग, नई दिल्ली। इसी संदर्भ में भोपाल ताल के मंडीद्वीप का किस्सा श्री ब्रजमोहन पांडे की पुस्तक 'पुरातत्व प्रसंग' में देखा जा सकता है। इसमें मंडीद्वीप के अलावा अन्य कई सिंगल (सिंहल) द्वीपों का भी उल्लेख है। आज भी इस इलाके में सिंगलद्वीप नाम के कुछ गांव मिलते हैं।

डाट से संबंधित सामग्री गोवा के श्री कलानंद मणि, अलवर के श्री राजेन्द्र सिंह तथा चाकसू, जयपुर के श्री शरद जोशी के साथ की गई यात्राओं के अलावा श्री रामचंद वर्म्मा के शब्दकोष में वर्णित इससे मिलते-जुलते चुरंडी, चुकरैंड आदि शब्दों के आधार पर तैयार की गई है।

पानी की तस्करी के प्रसंग में आए बुंदेली शब्द श्री गुणसागर सत्यार्थी से मिले हैं।

९७ आज भी खरे हैं तालाब