पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५३

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वाण-बाणखेल

गा होना चाहिये | उपयुक्त समयाों शर तैथारे कर

, इसमें फलक था बाण पिरो देना चादिये, गांठवाल्ा या ' छस्वा शर बाणेके लियें उपयुक्त नद्ीं होता ।; कड़ा, गोल और अंच्छी भ्रूमिम उत्पन्न छूकडी दी, तीर निर्म्माणके लिपे उत्तम होतो है । ज्ञलाधिफ्य, तृणांधिफ्य, भर छायाधिफ्ष भूमिमें ज्ञो शर उत्पन्न द्वोता ई, चद्द उठना हृढ़ नहीं होता और घुना हुआ द्वोता है। जद्दां धूप गधिक होतो द्वो भौर जद्दां धोडा बहुत वात्यु-भों दो, चद्दांका उत्पन्न घर बहुत उत्तम द्वोता-है। इस तरदका, दो

ः दॉने दो द्वाथ रूम्बा शर कनिष्ठा उ'गलीके समान मोटा होना चाहिये। यह शर कहीं टेढ़ा हो तो, उसे सीधा धर देना चादिये । ऊपर जो परिम्राण शरका लिणा गया, उससे कम या जधिकः न हो। मुष्टिवद्ध बांया हाथसे दाहमने पन्‍्धे तक मुश्विद्ध दो द्वाथ होतांहे। इतने ड़ तीरकी मनुष्य धन्ुप पर चढ़ा कर कानों तक उसे ग्वो'ज सपता हैं। शर अधिक छम्या होनेसे जोचनेमें भसुपिधा होती दै। :सरे उसकी गति ठोक

नद्ीी' होतो:) * हि

' बाण किसी लक्ष्य स्थान पर ही छोड़ा -जञाता दे | छोड़ा हुआ वांण यदि लक्ष्यस्थल पर न 'ज्ञा इधर उधर चला गया, तो बह व्यर्थ हुमा। बाण इधर उधर न ज्ञाय इसलिये छोग याणोर्मे पश्षेपोंके परॉख यां पर लगाते घे। पर जोइनेस याण सीधे अपने लश्यस्थानको दो

-'आापेगा, टेढ़ा मेढ़ा नहीं ज्ञायेगा।

कीआ, दस, शश, मत्मग्ड्र, बग़ुठा, शृद्ध और कुररी (श्रिह्री ) पक्षीक्ा पर इसके लिये उत्तम दोतो हैं। 'प्रत्येक शरमें समोनम्तर पर सार पर वांघना चाहिपे। थे पर भो #गुरू परिमाण हीं, किन्तु घिशपता यह होनी चादिये धन्नुप पर नढ़ानेवाले घाणके शरमें १० अंगुल परों मौर बेणव ,धनुके घाणमें ६ अगुल्ठ परोको योज्ञनां करनी दोगो | यद योजना तांत या मजबूत सूतेसे द्वोनो चाहिये | ,

- इस तरदके परधाले शरके नोक पर फरा चढ़ाया ज्ञाता हैं, नद्ीं तो बद्द युद्वीपयोगी नहीं होता। ज्ञिस -शरका अप्रभाग या नोक मोटा दोंता, हैं, चद स््रो जातीय ए२ षहा ज्ञाता है भौर जिसका पिछला भाग मोटा द्वोता

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' है, उसको पुरुष जातीय और जिसके अप्र गौर पाए्चाटप दोनों भाग एक समान द्वोते हैं, बद शर नपु'सक जाती का कहा जाता है। नारी ज्ञातिका शर बहुत दूर तकःज्ञाता है और पुरुष जञातिका शर दुरके लक्ष्पकों मेर करता है

. और नपु'सक ज्ञातिका शर फेवलछ लक्ष्य भेदफे लिये उप युक्त है।.

जो चाण सर्चल्लॉदमप अर्थात्‌ जिसका सब अब- यव लोहेका हो, उसे नाराव कद्दते हैं। शरके धाणमें जैसे चार पर संयुक्त रहता है ; वैसे ही इस नाराचबा्े चाणमें पांच पर जोड़े जाते हैं) ये शर याणसे कुछ मे।दा और हूथ्या द्वोगा | सभी हस नाराच वाणकों घना नही सकते दे। सिया इसके छघुनालिक घाण नलाफार यब्तसे छोड़ा ज्ञाता दै। यद्द पहाड्ट या किसो ऊ'चे स्थांनसे नीचेको भोर छोइनेपे उपयुक्त होता है। ५. ललनोकॉस्त्र देखा । ८ मम्त्रमेद, वाणमन्त्र। यद मन्त्र ओ ज्ञानते हैं, थे मनुष्य, पश्चो, पशु, पक्ष, ता आदिको विधिध प्रकारसे दुःख दें सकते हैं । . किन्तु घाण मन्त्रका कोई भो शास्त्र दिखाई नदी“ देता । यह केचल ग़ूरुपरम्पया दो प्रचलित मालूम द्ोता दै। चाणम्न्त छोड्टा भी जाता है भोर रोका भी,जञाता है।.. पत्र्कका बाण शब्द देखा | घाणकि .(सं9 पु० ) पक्र ऋषिका नाम । ( संत्कारकौमुदो ) चाणखेलड--आपसर्म भन्त्रात्मक बाण-निश्लेषदाप मुद्ध । इसमें एक आदमी मन्त्र प्रयोग करता है कौर दूसरा उसके विरुद्ध भक्ति-सम्पन्न मस्त प्रयोग १२ उस मन्त्र हा प्रमाव खर्घ कर डालता दै।. जो इस मन्‍्त्रों. अस्पस्त शोर प्रयोगपारदर्शां . हैं, थे गुणो कद्दलाने दै। इस दैशर्मे साधारणतः सपेरे दी इस चाणमन्त छा मम्थास फरते हैं बहुत ज्ञगढ़ नोच जआातिफे हिन्दू गौर मुसलमान दी यह मन्त्र सीखते दें । संपेरे ज्िस खाणमन्त॒का प्रयोग रूरते हैं उनमें उक्षों फे नष्ट करनेका मन्त्र अलग है। वहुतेरे फलसे लदे पृश्षक्रों देखते द्वी मन्त्र द्वारा उसे नए्ठ फर - डालते दैं। दाथमें सरसों और धूल ले कर मन्त्र पद कर मिस झमि- प्रेत चस्तु पर फे'को जातो है, यही घस्त या गूक्ष खूल कर नष्ट द्वो ज्ञाता है।. सपेरेमें -इनमी शक्ति है, छि थे