पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५२

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वात्सवाण वात्स ( स० पु० ) चडीत्सका पुत्र (राजतर० ८११३८) पावलि ( स० ० ) एक ऋषिका नाम । (पा ६३९९६) बादम् ( म० अ० ) अलम, वस. वहुत हो चुका वाढविक्रम ( सं ०. त्रि० ) अतिशक्तिसम्पन्न, वड़ावल वान् ।

वाण पु० ) चाण: शब्दस्तस्पास्तीति वाण अचू । १ अस्त्र विशेष धनुर्वेद में इसका विवरण लिखा है, कि वाण किस तरहका अच्छा होता है और उसमें युद्ध किया जा सकता है, पहले गत्यनुसार धनुप तैयार कर पीछे वाण तैयार करना चाहिये। सुलक्षणान्वित शरोके अग्रभागमे जो लेहिका फला होता है, उसे वाण कहते हैं। घाण लोहका यनता है। शुद्ध, वज्र और शान्त आदि कई तरहके लोहा होते हैं, इनमें थड़ा और शुद्ध ले। ऐसे हो गस्त्र तैयार किये जाते हैं, किन्तु घाण शुद्ध लेोहका बने तो अच्छा होता है। इस शुद्ध लोहसे कई तरहका फला तैयार होता है। जिस फलाको तेज (धार), तोक्ष्ण और क्षनरहिन बनाना हो, तो उसमें वज्र लेप करना चाहिये । फल। पक्ष प्रमाण विशिष्ट बना कर पोछे लक्षणाकान्त शरमें जेठना पड़ता है। यह फला कई तरह के होते हैं। भारामुख, सूर, गो- भ चन्द्र सुव्यप्रमुख, भाला सदृश, वत्सहन्त, पुच्छ, द्विमल, कर्णिक और काकतुण्ड इत्यादि बहुत तरहके नाम और विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकारके फला तय्यार किये जाते हैं।

फलाके आकारगत जो घैलक्षण्य विषय निर्दिष्ट हुआ यह केवल दिखाने के लिये नहीं, उससे कितने ही काम होते हैं। आपमुख नामक वाणसे मर्मभेद किया जाता है, अनवाणसे प्रतिरूप योद्धाका शिर काटा जा सकता है और भामुख तथा मूचाप्रमुख याणसे ढालको फाड़ा जा सकता है। फार्म्स काटने वाण हृदय चिद्ध करने के लिये भल (भाला ) और धनुषका गुण और आनेवाले शर्गेको काटने के लिये द्विभल नामक याण प्रशस्त है । काकतुण्डाकार फलासे तीन अंगुल परिमित लौर विद्ध किया जा सकता और लोड. कष्टकमुखाणसे तोन अंगुल गहरा घाव किया जा सकता है। फला प्रस्तुत करनेके समय उत्तम रूपमे पानी मा

पड़ता है। काटने मारने आदि बहुतेरे कार्यों के लिये उपयुक्त बहुत तरह फला तयार कर उसमें अविद्या के अनुसार पानी देना पड़ता है। नोसे हो स्त्रों सुन्दर धार और वे मजबूत होते हैं। फलामे पनी देने.. का तरीका बड़शारङ्गधरने इस तरह बताया है - उत्तम : औषध लेप कर जिस तरह फल पर पानी देने का विधान है, उसो विधान के अनुसार पानी चढ़ा कर फला तय्यार किया जाये तो उससे दुर्भेयलोद भी काटा जा सकता हैं। पीपल, नमक (सेन्धा) और फुड पे सब अच्छो तरह गोमूत्र में मिला कर फला पर लेपना चाहिये । इसे लेप कर फलाको आगमें गर्म कर देना चाहिये। पीछे.. जब यह लाल हो जाये तो आगसे निकाल ले और ललाई दूर हो जाने पर फिर उत्तप्त हो अवस्था में तेलमें जुर्गा दे। इस प्रणालो से पानो चढ़ाने पर बहुत अच्छा पांण तय्यार होता है।

दूसरी तरकीब-सरसों और शहद अच्छी तरह पीस कर फला पर लेप कर उसे प्रज्वलित अग्नि में डाल दें। जब मागमें उस पर मोरपंख की तरहका रंग दिखाई दे, तथ आगसे इसे निकाल जलमें डुवा देने से यह फला बहुत तोक्ष्मधारयुक्त और मजबूत होता है। . बृहत्संहिता में लिखा है, कि घोड़ी, ऊंटनी, तथा इथिनो के दूधसे पानी चढ़ाने पर फलाको धार तेज होती है। मियां इसके मछलीके पित्त, हरिणीका दूध, कुलिश. का दूध और बकरीका दूध द्वारा पानी चढ़ाने पर उस घाणसे हाथोका सूड भी काटा जा सकता है। फ गोन हुटङ्गको अङ्गार, फयूतर और चूहेका विट इन सर्वोको एकमें मिला कर पोसना चाहिये फिर फलामें लेप कर आगमे ता देना चाहिये | वीच बीच में इम पर तेल दिया जाय तो और अच्छा हो। ऐसा करनेसे पाण तेज धारवाला और मजबूत होता है। इस तरह लोहसे. पानो पढ़ा कर वाण तैयार करना चाहिये। यह वाण जिस शरमें बढ़ाया जाता है, उसका वृत्तान्न इस तरह लिखा है- । शर (तृणविशेष) बहुत मोटा या बहुत पतला न होना चाहिये । यह पद भूमिमे पैदा हुआ न हो, सगिरह या गांठे न हो, का हुआ गोल और पोले