पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९४

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( १६३) (क) अराजक राज्य, (ख) गण द्वारा शासित राज्य, (ग) युवराज द्वारा शासित राज्य, (घ) द्वैराज्य, (5) वैराज्य और (च) विरुद्ध रजाणि अथवा दलों द्वारा शासित राज्य । इनमें से (ग) वर्ग के राज्य उसी प्रकार के जान पड़ते हैं, जिस प्रकार के एक राज्य का शासनाधिकार खारवेल को उसके अभिषेक से पहले प्राप्त था ( योवरजम पसासितम् ) कानून के अनुसार इस प्रकार का शासन-कालो राजाओं के शासन का मध्यवर्ती काल समझा जाता था। अनुमान से यह जान पड़ता है कि यह शासन उस दशा में होता था, जब कि एक राजा मर जाता था और उसका उत्तराधिकारी दूसरा राजा बहुत छोटा या नाबालिग होता था और शासन-कार्य किसी अभिभावक या निरीक्षक काउन्सिल या मंडल के हाथ होता था। (च) वर्ग के राज्य से ऐसे राज्य का अनुमान होता है जिसमे एक से अधिक दलों का राज्य होता था। उदाहरणार्थ अंधक-वृष्णियों का राज्य । जैन सूत्र का कथन है कि ये सब राज्य श्रावकों और श्राविकाओं के लिये सुरक्षित नहीं हैं और उन्हें वहॉ न जाना क्योंकि इन राज्यों के अधिकारी विदेशी या अपरि- चिव साधुओं को संदेह की दृष्टि से देखते हैं और उन्हें राज- चाहिए;