पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१६२) काम नहीं चला और सब लोग कानून की अवज्ञा करने लगे, वब इस प्रकार का कानून बनानेवालों को अपनी भूल मालुम हुई। जब केवल कानून से शासन न हो सका, तब इस प्रकार की शासन-प्रणाली में रहनेवाले नागरिकों ने एकराज अथवा राजकीय शासन-प्रणाली का आश्रय लिया। मैं तो यहीसमझना चाहता था कि यह अराजक शासन-प्रणाली हिंदू राज- नीतिज्ञों की कपोल-कल्पना मात्र है; और मैं सोचता था कि उन हिंदू राजनीतिज्ञों ने प्रजातंत्र के सामाजिक बंधन और कानूनी शासनवाले सिद्धांतों के विरुद्ध केवल तर्क करने के लिये ही इसकी कल्पना की होगी। परंतु जैन सूत्र इस बात के लिये विवश करता है कि हम इसे शासन-प्रणाली का एक ऐसा प्रयोग माने जिसका इस देश मे अनेक बार अनुभव किया गया है। जैन सूत्र में इस शासन-प्रणाली का इस प्रकार उल्लेख है, मानों यह उस समय प्रचलित थी । जिस वर्ग में इस शासन-प्रणाली का उल्लेख है, उसमें की सभी शासन-प्रणालियाँवास्तविक और ऐतिहासिक हैं। उसमें नीचे लिखी शासन-प्रणालियाँ दी गई हैं-

से मिक्खु वा २ गामाणुगामम् दुइजमाणे अतरा से श्ररायाणि

वा गणरायाणि जुधरायाणि वा दोरजाणि वा वेरजाणि वा विरुद्धरजाणि वा सति लाढे विहारै संथरमाणेहिम् जणवैहिम ना विहारवत्तियै पवज्जेजा गमणैः केवली वूयाः थायाण एयम् ते ण वालाः श्रयं तेणे त चेव जाव गमणै ततो संजयाम् एव गामाणुगामम् दुइज्जेज्जा । आयारंग सुत्त (जैकोबीवाला संस्करण) २. ३-१-१०