पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१९०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१५६ ) सिद्धांत ठीक ठीक कार्य रूप में परिणत हो सकता था। जान पड़ता है कि संयुक्त संपत्ति और उसके संयुक्त भोग का यह कानूनी सिद्धांत राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रचलित कर दिया गया था; और उसमें उसके अनुसार कार्य भी होने लगा था, जिसके कारण शताब्दियों तक संघर्ष, प्रतियोगिता तथा रक्तपात आदि से रक्षा हो सकती थी। नेपाल के इन राजवंशों में कोई रक्त संबंध नहीं था--दोनों वंश एक ही पूर्वज की संतानों के नहीं थे। केवल इस प्रकार की शासन-प्रणाली के कारण हो शासन-कार्य में ये दोनों राजवंश संयुक्त हो गए थे। अर्थ- शास्त्र और आचारांग सूत्र में इसके संबंध में जो उल्लेख पाए हैं, उनसे सूचित होता है कि हिंदू भारत मे इस प्रकार की शासन-प्रणाली बहुत विरल नहीं थी। ६१०१. अराजक* या बिना शासकवाली शासन-प्रणाली आदर्शवादियों की शासन-प्रणाली थी, जिसकी हिंदू भारत के राजनीतिक लेखकों ने बहुत हँसी उड़ाई है। इस शासन-प्रणाली का श्रादर्श यह था कि केवल कानून या धर्मशास्त्र को हो शासक मानना

  • इस पारिभाषिक "अराजक' शब्द का वह "शाततायियों का

उपद्रव” वाला अर्थ नहीं है, जिस अर्थ में साधारणतः आजकल इसका व्यवहार किया जाता है, क्योंकि श्राततायियों या राजद्रोहियों के उपद्रव के लिये हिंदू राजनीति में एक विशिष्ट शब्द “मत्स्यन्याय" का व्यवहार होता है। देखे। अर्थशास्त्र १. ४. पृ. ६. खलीमपुर का ताम्रलेख (Epigraphia Indice ४. २४८;)मनु ७. २०. अराजक राज्य