पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१५८) को स्थान से निकली हुई घोषणाएँ हैं, जिनकी तिथियों से प्रमाणित होता है कि ये दोनों राजवंश साथ साथ और एक हो समय में शासन करते थे। परंतु शिलालेख पढ़नेवाले लोग द्वैराज्य शासन-प्रणाली से परिचित नहीं थे इसलिये वे लोग इसका वास्तविक महत्व नहीं समझ सके थे। इसी लिये उन्हें विवश होकर एक काल्पनिक विमक्त राजसीमा का अनु- मान करना पड़ा था। परंतु उनका ऐसा करना क्षम्य हो सकता है, क्योंकि आधुनिक काल में द्वैराज्य शासन प्रणाली का भाव लोगों के लिये बिलकुल अज्ञात है और वे सहसा उसे समझ नहीं सकते। साधारणतः इस प्रकार की शासन- प्रणाली की न तो कल्पना ही हो सकती है और न यही समझ में आ सकता है कि इससे काम किस प्रकार चलता होगा। भारत में इस प्रकार की शासन-प्रणाली से काम लेना मानों शासन-संबंधी अनुभव और सफलता का एक अद्भुत और उत्कृष्ट उदाहरण है-करामात है। नेपाल में इस प्रकार की शासन-प्रणाली बहुत दिनों तक प्रचलित थी। केवल हॉब्स का सिद्धांत जाननेवाले युरोपियन विद्वान नेपाल के इन शिलालेखों का ठोक ठीक अर्थ समझ ही नहीं सकते। परंतु भारत में, जहाँ संयुक्त परिवार का सिद्धांत अब तक जीता जागता और प्रचलित है, ऐसे शिलालेखों का अभिप्राय सहज में समझा जा सकता है। ऐसी शासन-प्रणाली केवल उसी देश में चल सकती थी जिसमें मिताक्षरावाला परिवार संबंधी