पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८८

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(१५७ ) प्रणाली का उल्लेख है और उसमें यह शासन गण शासन से भिन्न माना गया है। यह द्वैराज्य न तो एकराज अथवा ऐसा शासन था, जिसमें कोई एक ही वंशानुक्रमिक राजा शासन करता था; और न ऐसा शासन था जिसमे थोड़े से विशिष्ट या बड़े बड़े लोगों के हाथ मे शासनाधिकार होता था। यह ऐसी शासन-प्रणाली थी जो केवल भारत के ही इतिहास में पाई जाती है। हमारे यहाँ के साहित्य और शिलालेखों में इस प्रकार की शासन-प्रणाली के कई ऐतिहासिक उदाहरण मिलते हैं। हिंदू इतिहास के किसी युग में अवंती में इसी प्रकार की शासन-प्रणाली प्रचलित थी, क्योंकि महाभारत में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अवंती में विंद और अनु- विंद इन दो राजाओं का राज्य था और ये दोनों राजा मिलकर शासन करते थे । शिलालेखों में इस शासन-प्रणाली के जो उल्लेख आए हैं, उनके कारण भारतीय शिलालेख पढ़नेवाले विद्वान बहुत गड़बड़ी में पड़ गए हैं और वे इस समस्या का कोई ठीक ठीक निराकरण नहीं कर सके हैं। ईसवी छठी और सातवीं शताब्दी में नेपाल इसी प्रकार की शासन- प्रणाली के अधीन था। लिच्छवी राजवंश तथा ठाकुरी राजवश के राजाओं के ठीक एक ही समय के शिला- लेख काठमांडू मे पाए गए हैं।। ये एक ही राजधानी मे के

  • सभापर्व, अध्याय ३१. उद्योगपर्व अ० १६५. आदि ।

फ्लिीट द्वारा संपादित Gupta. Inscriptions. परिशिष्ट ४.