पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८७

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( १५६ ) था नेताओं ने अपना अधिकार वंशानुक्रमिक बना लिया था। स्वयं ऐतरेय ब्राह्मण में साधारण भोजों से भिन्न एक विशिष्ट प्रकार के भोज कहे गए हैं, जिनके लिये भोज पितरम् (८.१२.) शब्द आया है। इस भोज पितरम् का अर्थ है-- वंशानुक्रमिक भोज अथवा वह भोज जो किसी और भोज का पिता भी हो । अंगुत्तर निकाय में एक स्थान पर भुत्तानुभुत्तम् भुंजति (= पेत्तनिक) आया है, जो भोज पेत्तनिक का सूचक होगा। जैसा कि अशोक के शिलालेखों से प्रमाणित होता है, पेत्तनिक विशिष्ट वर्ग की ( Oligarchy) अथवा संभवतः सर- दारों की या गण शासन-प्रणाली (Aristocracy) पश्चिमी भारत में प्रचलित थी। और पाली वाक्य से यह जान पडता है कि पूर्वी भारत में भी उसके प्रचलित होने की संभावना है। 8 १००. कौटिल्य ने वैराज्य शासन-प्रणाली के प्रसंग में द्वैराज्य शासन-प्रणाली का भी विवेचन किया है। उसके अनुसार द्वैराज्य या "दो का शासन" ऐसा है जिसमें प्रतियोगिता या पार- प्रणाली स्परिक संघर्ष होता है, जो अंत में नाशक प्रमाणित होता है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आचारांग सूत्र मे भी इस प्रकार की शासन- द्वैराज्य शासन- अंगुत्तर निकाय, भाग ३. परिशिष्ट, पृ० ४५६. राज्यवैराज्ययोः द्वराज्यमन्योन्यपक्षद्वेषानुरागाभ्यां परस्पर- संवर्षेण वा विनश्यति । अर्थशास्त्र पृ० ३२३.