पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८६

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(१५५) 8. टीका मे जो कुछ कहा गया है, उससे यह ध्वनि निकलती है कि राष्ट्रिक सापत्य (सापतेय्य) या “नेताओं का मंडल" वंशानुक्रमिक नहीं होता था; अतः वे लोग निर्वाचित होते थे। पाली त्रिपिटक में जो कुछ उल्लेख है, उससे यह अभि- प्राय निकलता है कि राष्ट्रिक शासन-प्रणाली बहुत करके पूर्वीय भारत में भी प्रचलित थी। भौज्य की भॉति इस शासन-प्रणाली के आधार पर भी पश्चिम के राष्ट्रिकों का नामकरण हुआ था। पश्चिमी भारत के सुराष्ट्र देश का नाम भी सम्भवतः राष्ट्रिक शासन-प्रणाली के ही कारण पड़ा था। अर्थशास्त्र के अनुसार सुराष्ट्र लोग प्रजातंत्री थे और उनमें कोई "राजा" उपाधिधारी शासक नहीं होता था। जान पड़ता है कि देशों के राष्ट्रिक और सुराष्ट्र नाम इसी प्रकार की प्रजातंत्रो शासनप्रणाली के कारण पड़े हैं। S६६. ऊपर पाली त्रिपिटक के जिस वाक्य का उल्लेख किया गया है, उसमें पेत्तनिक लोग राष्ट्रिकों के समकक्ष रखे गए हैं; और जैसा कि हम ऊपर बतला चुके हैं, इस पेत्तनिक शब्द का अभिप्राय है--वंशानुक्रमिक नेता । जान पड़ता है कि इन लोगो की शासन-प्रणालो राष्ट्रिकों की या बल्कि भोजों की शासन-प्रणाली के बिलकुल विपरीत थी, जिसमे शासकों

अंगुत्तर निकाय, भाग ३-पृ० ४५६, जिसमे पेत्तनिक को रट्रिक के

विपरीत वंशानुक्रमिक बतलाया गया है। + अर्थशास्त्र, पृ० ३७६. देखो ऊपर 8 शऔर ५७.