पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८४

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( १५३) वह भी प्रजातंत्र को घृणा या उपेक्षा की दृष्टि से देखा करता था । उसका मत है - “जहाँ वैराज्य शासन-प्रणाली होती है, वहाँ किसी व्यक्ति के मन में निजत्व (राज्य के संबंध में) का भाव ही उत्पन्न नहीं होता। वहाँ राजनीतिक संघटन का उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति देश को बेच सकता है। कोई अपने आपको उत्तरदायी नहीं समझता और लोग उदासीन होकर राज्य छोड़कर चले जाते हैं। जैन आचारांग सूत्र* मे भी जहाँ सिन्न भिन्न प्रकार की शासन-प्रणालियों का उल्लेख है, वहाँ वैराज्य का नाम आया है। महाभारत में विराज शब्द शासक की पद संबंधी उपा- धियों में से एक बतलाया गया है।। ६६६. यद्यपि पाणिनि ने मद्रों की राजधानी का नाम नहीं दिया है, तथापि उसने उसका उल्लेख अवश्य किया है । और और मार्गों या साधनों से हमें पता चलता है कि उसका नाम शाकल था, जो आधुनिक स्यालकोट माना जाता है। यदि लोगों का यह मानना ठीक हो, तो शाकल अवश्य ही प्रारंभ मे उत्तर मद्रों का निवास स्थान रहा होगा।

  • आयारंग सुत्तम् (जैकोबी का संस्करण) पृ०८३. वेरज्जानि श्रादि ।

+राजा भोजो विराट् सम्राट..... ......शांति० अ० ६८. श्तेकि ५४. + महाभारत, कर्णपर्ष, अ० ११ और ४४.