पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/१८१

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(१५०) शासन-प्रणाली प्रचलित थी, वह दक्षिण मद्रों की शासन-प्रणाली से भिन्न प्रकार की थी। इसके परवर्ती साहित्य में उत्तर कुरुओं का जो उल्लेख है, उससे जान पड़ता है कि उस समय उनका अस्तित्व केवल कथा-कहानियों में ही रह गया था- वे लोग पौराणिक कोटि में चले गए थे--और वे अपनी सम्पन्नता तथा सुखपूर्ण जीवन के लिये प्रसिद्ध थे । ऐतरेय 56 -- मिलायो मिलि'द पन्ही खंड १. पृ० २.३. ईसवी सन् के श्रारंभ में उत्तर कुरु की तुलना में प्राचीन मद राजधानी (६६) का इस प्रकार वर्णन किया गया है। यह नगर ,जो सगल कहलाता है, व्यापार का एक बड़ा केंद्र है जो एक मनोहर अनूप (जलनाय) पहाडी प्रदेश में स्थित है। इसमें उपवन, वाटिकाएँ, माड़ियां, झीलें और तालाव श्रादि बहुत अधिकता से हैं और यह प्रदेश नदियों, पर्वतों तथा वनों का स्वर्ग है। चतुर शिल्पियों ने इस प्रदेश की रचना की है और इसके निवासी किसी प्रकार के कष्ट या पीड़ा का नाम भी नहीं जानते; क्योंकि इनके सभी शत्रु और विरोधी नष्ट कर दिए गए हैं। इसकी रक्षा का प्रबंध बहुत सुंदर है। इसके बहुत से दृढ़ दुर्ग और बुर्ज हैं जिनमें अच्छे अच्छे प्रवेशद्वार बने हैं। इसके बीच में सफेद दीवारोंवाला राज- दुर्ग है जिसके चारों ओर गहरी खाइयां खुदी हैं । इसकी गलियों, मुहानियों और हाटी श्रादि की बहुत ही उत्तमता-पूर्वक रचना हुई है। इसमें नाना प्रकार के असंख्य बहुमूल्य द्रव्य अच्छी तरह सजाए हुए हैं जिनसे दूकानें भरी पड़ी हैं। यह अनेक प्रकार के सैकड़ों अन्न-सनो श्रादि से भली भांति सुसजित है; और इसमें हजारों लाखों विशाल प्रासाद और भवन हैं जो हिमालय पर्वत की चोटियों की भांति