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सेवासदन
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थे और १० हिन्दू। सुशिक्षित मेम्बरों की संख्या अधिक थी, इसलिए शर्माजी को विश्वास था कि म्युनिसिपैलिटी में वेश्याओं को नगर से बाहर निकाल देने का प्रस्ताव स्वीकार हो जायगा। वे सब सभासदों से मिल चुके थे और इस विषय में उनकी शंकाओं का समाधान कर चुके थे, लेकिन मेम्बरों में कुछ ऐसे सज्जन भी थे जिनकी ओर से घोर विरोध होने का भय था। ये लोग बड़े व्यापारी, धनवान् और प्रभावशाली मनुष्य थे। इसलिए शर्माजी को यह भय भी थी कि कहीं शेष मेम्बर उनके दबाव में न आ जाएँ। हिन्दुओं मे विरोधीदल के नेता सेठ बलभद्रदास थे और मुसलमानों मे हाजी हाशिम। जबतक विट्ठलदास इस आन्दोलन के कर्ताधर्ता थे तबतक इन लोगों ने उसकी ओर कुछ ध्यान न दिया था, लेकिन जबसे पद्मसिंह और म्युनिसिपैलिटी के अन्य कई मेम्बर इस आन्दोलन मे सम्मिलित हो गये थे, तब से सेठजी और हाजी साहब के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। उन्हे मालूम हो गया था कि शीघ्र ही यह मन्तव्य सभा में उपस्थित होगा, इसलिए दोनों महाशय अपने पक्ष स्थिर करने में तत्पर हो रहे थे। पहले हाजी साहब ने मुसलमान मेम्बरों को एकत्र किया। हाजी साहब का जनतापर बड़ा प्रभाव था और वह शहर के समस्त मुसलमानों के नेता समझे जाते थे। शेष ७ मेम्बरों में मौलाना तेग अली एक इमामबाड़े के वली थे। मुन्शी अबुलवफा इत्र और तेल के कारखाने के मालिक थे। बड़े-बड़े शहरों में उनकी कई दूकानें थी। मुन्शी अबदुल्लतीफ एक बड़े जमीदार थे, लेकिन बहुधा शहर में रहते थे। कविता से प्रेम था और स्वयं अच्छे कवि थे। शाकिरबेग और शरीफहसन वकील थे। उनके सामाजिक सिद्धान्त बहुत उन्नत थे। सैयद शफकतअली पेन्शनर डिप्टी-कलक्टर थे। और साहब शोहरत खाँ प्रसिद्ध हकीम थे। ये दोनों महाशय सभा समाजो से प्राय: पृथक रहते थे, किन्तु उनमें उदारता और विचारशीलता की कमी न थी। दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य थे। समाज में उनका बड़ा सम्मान था।

हाजी हाशिम बोले, विरादरा ने वतन की यह नई चाल आप लोगो ने देखी? वल्लाह इनको सूझती खूब है! बगली घूसे मारना कोई इनसे सीखcatagory : हिन्दी