४९६ सम्पूर्ण गांधी वाङमय था नहीं; इसलिए परवानेके बिना व्यापार करनेवाले आदमियोंके खिलाफ सरकारके पास एकमात्र उपाय यही था कि वह कानूनका भंग करनेके जुर्ममें उनपर मामला चलाती और जुर्माने करती । इस खुले अत्याचारकी कहानीको पूरा करनेके लिए दो-एक बातें हम और बता दें। (श्री हुसेन अमदके साथ जानबूझ कर जो कार्रवाई की गई उसके वर्णनमें हमारी समझसे तो अत्या- चार शब्द भी सौम्य है।) श्री हुसेन अमद ट्रान्सवालमें करीब दस वर्षसे रहते हैं और उन थोड़ेसे चुने हुए आदमियोंमें से हैं, जिनके नाम पुरानी सरकारने व्यापारके परवाने जारी करनेकी कृपा दिखाई थी । हमारे पाठक शायद यह जानते ही हैं कि गणराज्यके दिनोंमें अधिकांश ब्रिटिश भारतीय या तो ब्रिटिश प्रतिनिधिसे संरक्षण प्राप्त करके परवानेके बगैर व्यापार करते थे या अपने गोरे मित्रोंके नामपर जारी परवानोंके आधारपर । रिपोर्ट में स्वभावतः यह बात भी नहीं लिखी गई है कि श्री हुसेन अमदके साथ किये गये व्यवहारपर वाकरस्ट्रूमके गोरे निवासियोंको बहुत घृणा हुई और उन्होंने श्री हुसेन अमदको यह प्रमाणपत्र दिया कि वै परवाना पानेके पूर्णतः पात्र हैं। रिपोर्टमें कहीं इस बातका भी जिक्रतक नहीं कि वाकरस्ट्रममें श्री हुसेन अमद ही अकेले भारतीय थे जिनकी दूकान वहाँ थी और उन्हें वहाँके यूरोपीय व्यापारिक संस्थानोंका समर्थन व्यापक रूपसे प्राप्त था । अब हम दूसरे परवानेदार -- • रस्टेनबर्गके श्री सुलेमान इस्माइलके मामलेको लेते हैं । सरकारी कथन (१) जिस समय लड़ाई छिड़ी, सुलेमान इस्माइलके पास रस्टेनबर्ग में व्यापार करनेका परवाना नहीं था। उसने तो अपने कारोबारकी यह शाखा उन दिनों स्थापित की, जब अंगरेजी फौजोंने यहाँ कब्जा किया। वस्तुस्थिति (१) रिपोर्ट इस महत्त्वपूर्ण सत्यका उल्लेख नहीं करती कि फौजी अधिकारियोंने ही श्री सुलेमानको व्यापार करनेका परवाना दिया और इस तरह रस्टेनबर्ग में अपना कारोबार स्थापित करनेमें उनकी सहायता की। सरकारी कथन (२) सन् १९०२ के अक्टूबरमें रस्टेनबर्गके रेजिडेंट मजिस्ट्रेटने श्री सुलेमान इस्मा- इलकी पेढ़ीके प्रतिनिधिको हिदायत की कि उन्हें उस शहरमें व्यापार करनेका अधिकार नहीं है। वस्तुस्थिति (२) रिपोर्टमें यह भी लिखा जा सकता था कि रेजिडेंट मजिस्ट्रेट श्री सुलेमानको परवाना देनेवाले अपने पूर्वगामी अधिकारीके उत्तराधिकारी थे; इसलिए वे अपनेसे पहले अधिकारीके निर्णयपर आपत्ति न कर सकते थे और उस परवानेको वापस न ले सकते थे, जो इस बातको पूरी तरहसे जानते हुए दिया गया था कि अर्जदार लड़ाईसे पहले उस जिलेमें व्यापार नहीं करता था । इसके अलावा विवरणमें और भी महत्त्वपूर्ण तथ्योंका उल्लेख नहीं किया गया है, जो यह परवाना जारी करनेसे पहले सबपर प्रकट थे। तथ्य ये थे कि दूसरे कितने ही जिलोंमें Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५३८
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