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ट्रान्सवालमें मजदूरोंफा सवाल ४८३ न्यायालयके क्षेत्रको सीमाको भी लाँघ गई थी। इसके खिलाफ उपनिवेशोंके अन्दर उस समय जो शोर मचा था उसे पाठक भूले नहीं होंगे। परन्तु वह अधिनियम इससे रत्ती- भर भी बुरा था ऐसा नहीं कहा जा सकता। हाँ, अगर कोई अन्तर है तो यह कि हमारा अधिनियम उससे अधिक बुरा है, क्योंकि इसका अमल उसकी अपेक्षा कहीं अधिक बार होगा। यह कहना मूर्खता है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय में अपीलका अधिकार दे दिया गया होता, तो कानून कारगर न होता। यह संस्था सहज बुद्धिसे काम लेंगी, यह विश्वास अवश्य ही किया जा सकता था। एक स्वशासन-प्राप्त समाजमें जिसकी अपनी प्रतिनिधि-संस्थाएँ हैं, अधिकारोंको प्रभावित करनेवाले मामलेमें राज्यके सर्वोच्च न्याया- लयका आश्रय लेनेका मार्ग जान-बूझकर बन्द करनेके सिद्धान्त स्थापित करनेकी अपेक्षा तो जहाँ-तहाँ एक-दो मामलोंमें नगर पालिकाओंकी इच्छाओंका अनादर हो जाने देना कहीं ज्यादा अच्छा है । हमें आशा है कि हमने उपनिवेशके जिम्मेवार निवासियोंके शब्दोंमें ही बता दिया है कि ऊपर बताई हमारी आपत्तियाँ उनकी नजरोंमें कहाँतक उचित हैं । इसलिए, हम विधान-निर्माताओंसे और सामान्य रूपसे समस्त उपनिवेशियोंसे अपील करते हैं कि डाउनिंग स्ट्रीटसे किसी प्रकारका असर उनपर पहुँचे, इससे पहले वे खुद ही सही रास्तेपर आ जायें। यह मामला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, मुख्यतः इसलिए भी कि वे जो कुछ करना चाहते हैं वह बहुत कम हानिकर तरीके से भी किया जा सकता है। हाँ, अगर उन्होंने यही निश्चय कर लिया हो कि इस उपनिवेशमें एक-एक भारतीय व्यापारीको जड़मूलसे उखाड़ फेंकना है तो बात दूसरी है; परन्तु याद रहे, पिछले हफ्ते ही सर जेम्स हलेटने ट्रान्सवालके श्रम आयोगके सामने अपनी गवाही देते हुए इन्हीं व्यापारियोंको उपनिवेश के लिए फायदेमन्द बताया है। श्री एलिस ब्राउनने भी कहा था कि हमारा उद्देश्य यह कदापि नहीं कि हम भारतीयोंकी भावनाओंको चोट पहुँचायें या यहाँसे उनकी जड़ें उखाड़ फेंकें। हम तो केवल न्याय करना और निहित स्वार्थीको मान्यता देना चाहते हैं । हम आशा करते हैं कि इन शब्दोंमें उन्होंने समस्त उपनि- वेशकी भावनाओंको ही प्रकट किया है। अगर यह सही है, तो हम मानते हैं कि, हमारी प्रार्थना न्यायसंगत है और उसपर अवश्य उचित विचार होना चाहिए। [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, २४-९-१९०३ ३४२. ट्रान्सवालमें मजदूरोंका सवाल ट्रान्सवालके विकासके लिए दक्षिण आफ्रिका में पर्याप्त मजदूर हैं या नहीं इस प्रश्नपर विचार करनेके लिए श्रम आयोगकी बैठकें इन दिनों जोहानिसबर्ग में चल रही हैं । अब आयोगका काम समाप्त होनेको है। यह देखनेके लिए कि चीनी मजदूर उपलब्ध हो सकते हैं या नहीं, आयोगके सदस्य पूर्वकी यात्रापर गये थे । वे इस हफ्ते में लौट आयेंगे। यह तो निश्चित-सा है कि श्रम आयोग इसी नतीजेपर पहुँचेगा कि आफ्रिकामें आवश्यक संख्या में मजदूर नहीं हैं। हम यह भी निश्चित-सा ही मान सकते हैं कि एशियासे और विशेषकर चीनसे मजदूर लानेका निश्चय किया जायेगा । Gandhi Heritage Portal