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सिक्का।

उस रुपये में ख़ुद ही नहीं आई। जिस चीज़, जिस काम, जिस परिश्रम के बदले वह मिलता है उसी की वह शक्ति है। आपने महीने भर मेहनत करके यदि १०० रुपये कमाये और उन रुपयों की किताबें मोल लीं तो वे किताबें आप के रुपये के बदले में मिली हुई नहीं समझी जानी चाहिए; किन्तु आपको महीने भर की मेहनत के बदले में मिली समझनी चाहिए। रुपये ना सिर्फ़ इस बात की टिकिट, सर्टीफ़िकट या सनद हैं कि आपने महीने भर मेहनत की है। जो लोग इस सूक्ष्म भेद को नहीं जानते वे रुपये पैसे ही को सम्पत्ति समझते हैं। ऐसे ही लोग रुपया देकर जब कोई चीज़ ख़रीदते हैं तब कहते हैं कि हमारा आज इतना धन ख़र्च हो गया। उनकी समझ में यह नहीं आता कि उलटा हमीं बाहर से पदार्थ रूपी धन घर ले आये।

रुपये पैसे से तीन काम होते हैं। एक तो, वह दो चीज़ों के विनिमय-साधन में मध्यस्थ का काम करता है। दूसरे, विनिमय-साध्य दो चीज़ो की क़ीमत की वह तादाद बतलाता है। तीसरे, भविष्य में जो चीज़ देनी होती है उसकी क़ीमत वह पहले ही से बता देता है। इस तीसरी बात को ज़रा स्पष्ट करके बतलाने की ज़रूरत है। कल्पना कीजिए कि देवदत्त ने यज्ञदत्त से १०० रुपये की ३०० मन लकड़ी ली और वादा किया कि ३ वर्ष बाद मैं आपके ये रुपये लौटा दूंगा। अब यदि ३ वर्ष बाद लकड़ी की कीमत दूनी हो जाय, अर्थात् ३०० मन लकड़ी २०० रुपये की मिलने लगे, तो भी देवदत्त को सिर्फ सौ ही रुपये यज्ञदत्त को देने होंगे। यदि रुपये के द्वारा लकड़ी की क़ीमत पहले ही से न निश्चित हो जाती तो देवदत्त को लकड़ी के तत्कालिन मूल्य के हिसाब से दूना धन यज्ञदत्त को देना पड़ता। रूपये पैसे के इस गुण से समाज को बहुत लाभ होता है।

यह कोई नियम नहीं है कि सिक्का सोने, चाँदी या ताँबे ही का हो। अनेक चीज़ों का सिक्का हो सकता है। राजाज्ञा से सब लोगों को उसे क़बूल भर कर लेना चाहिए। लोहा, लकड़ी, कौड़ी, सीप, घोंघे, बादाम, अंडे, शराब आदि चीज़ें सिक्के का काम दे चुकी हैं। कौड़ियाँ तो इस देश में अब भी चलती हैं। यद्यपि बहुत सी चीज़ों का सिक्का हो सकता है तथापि सिक्का होने की योग्यता आने के लिए मुख्य तीन गुणों का होना जरूरी है। यथा :—

(१) जिस चीज़ का सिक्का जारी करना हैं उसकी क़ीमत में बहुत फेर फार न होना चाहिए। वह हमेशा स्थिर रहनी चाहिए।