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लगान।

की संख्या यहाँ अधिक है। जमीन का उपजाऊ पन पहले से बहुत कम हो गया है। लोगों के पास किसी तरह की पूँजी या अनाज का संग्रह नहीं है। एकही फ़सल बिगड़ जाने से कृषि-जीवियों को या तो चार पाँच पैसे रोज पर सरकार के इमदादी कामों पर मजदूरी करनी पड़ती है या घर घर भीख माँगनी पड़ती है। और समृद्धिशाली देशों की अपेक्षा यहाँ के फ्री आदमी की आमदनी आधी भी नहीं है। इस दशा में आबादी बढ़ने से देश की हानि होगी या लाभ, इसका अनुमान सहजही में हो सकता है। यहाँ की साम्पत्तिक अवस्था ऐसी नाजुक है कि एकही साल के अकाल से लोग दाने दाने को मुहताज हो जाते हैं। उनके परिमित दानों के हिस्सेदारों की संख्या बढ़ना मानो दारिद्र की करालता और दुर्भिक्ष की भीषणता से देश का सर्वनाश होना है!

हिन्दुस्तान में लगानसम्बन्धी बन्दोबस्त।

इस देश में लगान वसूल करने का रिवाज ही कुछ और है। यहाँ स्पर्द्धा से लगान नहीं ठहराया जाता। ज़मीन के लगान से सम्बन्ध रखनेवाले यहाँ दो तरह के बन्दोबस्त है—इस्तिमरारी और ग़ैर-इस्तिमरारी। बंगाल और बिहार में लगान का इस्तिमरारी बन्दोबस्त है। उसे अँगरेज़ी में "परमेनेंट सेटलमेंट" कहते हैं। वहाँ लगान में कभी कमी बेसी नहीं होती। जो लगान नियत हो गया है वही देना पड़ता है। जैसे अन्य प्रान्तो में दस, सोलह, बीस या तीस वर्ष बाद फिर नया बन्दोबस्त होता है; फिर ज़मीन की माप होती है; और फिर नए सिरे से लगान लगाया जाता है; वैसे बंगाल में नहीं होता। बंगाल में ज़मींदार ही ज़मीन के मालिक हैं। उनको इस बात का विश्वास है कि यह ज़मीन हमारी है, हम बेदखल नहीं किये जायँगे, और न हमसे लगान ही अधिक लिया जायगा। इसी से वे लोग घर की पूँजी लगाकर ज़मीन को अधिक उपजाऊ बनाते हैं। फल यह होता है कि उनको भी फ़ायदा होता है और देश की सम्पत्ति भी बढ़ती है। सम्पत्ति बढ़ने से परम्परा से सरकार को भी लाभ ही होता है।

बंगाल और, बिहार को छोड़कर अन्यत्र सब कहीं ग़ैर-इस्तिमरारी अर्थात् चन्दरोज़ा बन्दोबस्त है। यहाँ हर बन्दोबस्त के बाद लगान की शरह बदला करती है। इसमें दो भेद हैं युक्त-प्रदेश, मध्य-प्रदेश और पंजाब में ज़मींदारी रीति से लगान वसूल किया जाता है और ब्रह्मा, आसाम, मदरास

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