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शराब की दूकान'
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फिर सम्राट हो गया।

पिछली कतार में एक देवी भी मौन बैठी हुई थीं। जब कोई मेम्बर बोलता, वह एक नज़र उसकी तरफ़ डालकर फिर सिर झुका लेती थीं। कांग्रेस की लेडी मेम्बर थीं। उनके पति महाशय जी० पी० सकसेना कांग्रेस के अच्छे काम करनेवालों में थे। उनका देहान्त हुए तीन साल हो गये थे।मिसेज सकसेना ने इधर एक साल से कांग्रेस के कामों में भाग लेना शुरू कर दिया था और कांग्रेस-कमेटी ने उन्हें अपना मेम्बर चुन लिया था। वह शरीफ़ घरानों में जाकर स्वदेशी और खद्दर का प्रचार करती थीं। जब कभी कांग्रेस के प्लेटफार्म पर बोलने खड़ी होती,तो उनका जोश देखकर ऐसा मालूम होता था,आकाश में उड़ जाना चाहती हैं। कुन्दन का-सा रंग लाल हो जाता था,बड़ी-बड़ी करुण आँखें-जिनमें जल भरा हुआ मालूम होता था-चमकने लगती थीं। बड़ी खुशमिजाज़ और उसके साथ बला की निर्भीक स्त्री थीं। दबी हुई चिनगारी थी, जो हवा पाकर दहक उठती है। उनके मामूली शब्दों में इतना आकर्षण कहाँ से आ जाता था,कह नहीं सकते। कमेटी के कई जवान मेम्बर, जो पहले कांग्रेस में बहुत कम आते थे, अब बिला नागा श्राने लगे थे। मिसेज़ सकसेना कोई भी प्रस्ताव करें,उसका अनुमोदन करनेवालों की कमी न थी। उनकी सादगी, उनका उत्साह, उनकी विनय,उनकी मृदु वाणी कांग्रेस पर उनका सिक्का जमाये देती थी। हर प्रादमी उनकी खातिर सम्मान की सीमा तक करता था ; पर उनकी स्वाभाविक नम्रता उन्हें अपने दैवी साधनों से पूरा-पूरा फायदा न उठाने देती थी। जब कमरे में बाती,लोग खड़े हो जाते थे ; पर वह पिछली सफ़ से आगे न बढ़ती थीं।

मिसेज़ सकसेना ने प्रधान से पूछा - शराब की दुकानों पर औरते धरना दे सकती हैं?

सबकी आँखे उनकी ओर उठ गई। इस प्रश्न का आशय सब समझ गये।

प्रधान ने कातर स्वर में कहा-महात्माजी ने तो यह काम औरतों ही। को सुपुर्द करने पर जोर दिया है ; पर...। मिसेज सकसेना ने उन्हें अपना