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समर-यात्रा
 


तुमने जगा क्यों न लिया। तुम तो जानती हो, मेरी आदत सबेरे सो जाने की है।

'महाराज ने घर में घुसने ही न दिया। जगा कैसे लेती। आपको इतना तो सोचना चाहिए था कि वह वहाँ गई है, तो आती होगी। घड़ी भर बाद ही सोतीं, तो क्या बिगड़ जाता। पर आपको किसी की क्या परवाह !'

'तो क्या हुआ, मिस खुरशेद मारने दौड़ी ?'

'वह नहीं मारने दौड़ी, उनका वह ख़सम है, वह मारने दौड़ा लाल आँखे निकाले आया और मुझसे कहा---निकल जा। जब तक मैं निकलूँ-निकलूंँ, तब तक हंटर खींचकर दौड़ ही तो पड़ा। मैं सिर पर पांव रखकर न भागती, तो चमड़ी उधेड़ डालता। और वह रोड़ बैठी तमाशा देखती रही। दोनों में पहले से सधी-बदी थी। ऐसी कुलटाओं का मुंह देखना पाप है। वेश्या भी इतनी निर्लज न होगी।

ज़रा देर में और देवियां आ पहुँची। यह वृत्तान्त सुनने के लिए सभी उत्सुक हो रही थीं। जुगनू की कैंची अविश्रान्त रूप से चलती रही। महिलाओं को इस वृत्तान्त में इतना आनन्द आ रहा था कि कुछ न पूछो। एक-एक बात को खोद-खोदकर पूछती थीं। घर के काम-धन्धे भूल गये,खाने-पीने की भी सुधि न रही। और एक बार सुनकर ही उनकी तृप्ति न होती थी। बार-बार वही कथा नये आनन्द से सुनती थीं।

मिसेज़ टण्डन ने अन्त में कहा---इस आश्रम में ऐसी महिलाओं को लाना अनुचित है। आप लोग इस प्रश्न पर विचार करें।

मिसेज़ पंडन्या ने समर्थन किया---हम आश्रम को आदर्श से गिराना नहीं चाहते। मैं तो कहती हूँ, ऐसी औरत किसी संस्था की प्रिंसिपल बनने के योग्य नहीं।

मिसेज़ बांगड़ा ने फ़रमाया---जुगनूबाई ने ठीक कहा था। ऐसी औरत का मुँह देखना भी पाप है। उससे साफ़ कह देना चाहिए, आप यहाँ तशरीफ़ न लायें।

अभी यह खिचड़ी पक ही रही थी कि आश्रम के सामने एक मोटर