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सत्यार्थप्रकाशः॥

न हो वही बुद्धिमान् पण्डित है॥४॥ जिसकी वाणी सब विद्याओ और प्रश्नोत्तरों के करने में अतिनिपुण, विचित्र, शास्त्रों के प्रकरणों का वक्ता, यथायोग्य तर्क और स्मृतिमान् ग्रन्थों के यथार्थ अर्थ का शीघ्र वक्ता हो वही पण्डित कहाता है॥५॥ जिसकी प्रज्ञा सुने हुए सत्य अर्थ के अनुकूल और जिसका श्रवण बुद्धि के अनुसार हो जो कभी आर्य अर्थात श्रेष्ठ धार्म्मिक पुरुषों की मर्यादा का छेदन न करे वहीं पण्डित संज्ञा को प्राप्त होवे॥६॥ जहां ऐसे २ स्त्री पुरुष पढ़ानेवाले होते हैं। वहां विद्या धर्म और उत्तमाचार की वृद्धि होकर प्रतिदिन आनन्द ही बढ़ता रहता है। पढ़ने में अयोग्य और मूर्ख के लक्षण:—

अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
अर्थाश्चाऽकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥१॥
अनाहृतः प्रविशति ह्यपृष्टो बहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ॥२॥

ये श्लोक भी महाभारत उद्योगपर्व विदुरप्रजागर अध्याय ३२ के हैं:–(अर्थ) जिसने कोई शास्त्र न पढ़ा न सुना और अतीव घमण्डी दरिद्र होकर बड़े २ मनोरथ करनेहारा बिना कर्म से पदार्थों की प्राप्ति की इच्छा करनेवाला हो उसी को बुद्धिमान लोग मूढ़ कहते हैं॥१॥ जो बिना बुलाये सभा व किसी के घर में प्रविष्ट हो, उच्च आसन पर बैठना चाहे, बिना पूछे सभा में बहुतसा बके, विश्वास के अयोग्य वस्तु या मनुष्य में विश्वास करे वही मूढ़ और सब मनुष्यों में नीच मनुष्य कहाता है॥२॥ जहां ऐसे पुरुष अध्यापक, उपदेशक, गुरु और माननीय होते हैं वहां अविद्या, अधर्म, असभ्यता, कलह, विरोध और फूट बढ़ के दु:ख ही बढ़ जाता है। अब विद्यार्धियों के लक्षण:—

आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठिरेव च।
स्तब्धता चाभिमानित्वं तथाऽत्यागित्वमेव च।
एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मताः॥१॥
सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेत्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत्सुखम्॥२॥'