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सस्यार्थीप्रकाशः ॥ १ १० ---



-- जो दुष्टाचारी पुरुष है वह संसार में सज्जनों के मध्य में निन्दा कोप्राप्त दुःख- भागी और निरन्तर व्याधियुक्त होकर अल्पायु का भी भोगनेहारा होता है । इसलिये ऐसा प्रयत्न करे:- अ कर्म ततबतेन वर्जयेत्। यद्यपरवश यद्ययदारमवश तु स्यत्तत्तत्सेचेत यत्ततः ॥ १ ॥

सब परव दुःख सवनात्मक सुखम् ।

एतविद्यात्समासेन लक्षण सुखदुःखयोः ॥ २ ॥ मनु० ४ । १५। १६० ॥ जो २ पराधीन कर्म हो उस २ का प्रयत्न से त्याग और जो २ स्वाधीन कर्म ह उस २ का प्रयत्न के साथ सेवन करे ॥ १ ॥ क्योंकि जो २ पराधीनता है व २ सख दु:ख और जो २ स्वाधीनता है व३ २ सब सुख यहीं सक्षेप से सुख और दु:ख का लक्षण जानना चाहिये । २ ॥ परन्तु जो एक दूसरे के आधीन काम । है वह २ अधीनता से ही करना चाहिये जैसा कि ली और पुरुष का एक दूसरे के | प्राचीन व्यवहार आत् स्त्री पुरुष का और पुरुष वी का परस्पर प्रियाचरण अबु कूल रहना व्यभिचार बा विरोध कभी न करना पुरुष की आज्ञानुकूल बर के काम ! की और बाहर के काम पुरुष के आधीन रहना दुष्ट व्यसन में फंसने से एक दूसरे को रफना अर्थात् यही निश्चय जानना कि जब विवाह होवे तब खत्री के साथ पुरुष और पुरुष के साथ श्री त्रिक चुकी अर्थात् जो स्ली और पुरुष के साथ झाव, भाव, नव हिग्याप्र पर्यन्त जो कुछ हैं ब६ वीर्यादि एक दूसरे के आाधीन होजाता है की वा पुरुष प्रसन्नता के विना कोई भी से वहार न करें इनमें बहे अप्रियकारक व्यभिचार, वेश्या ! पर पगमनादि काम ईं इन फो छोड़ अपने पति के साथ स्त्री और स्त्री के साथ पति मद्रा प्रसन्न रहें । जो नाहरणवस्थ हों तो पुरुप लड़कों को पढ़ाव तथा मुशि- दिता शर्मा लटसियों को पढ़वे नानाविध उपदेश और वक्तृत्व कर उनको विद्वान् फर भी या नीय ट्रे पति और पुरुष की पूजनीय अर्थात् सत्कार करने योग्य देवी AI है जपन 5 गुरुकुल में २६ तबतक साता पिता के समान अध्यापक को समझे मtहै अध्यापर अपने सन्तानों के समान शिष्यों को सममें 1 पढ़नेहारे अध्यापक

  • माफिया में होने दिये

I है ।